________________ 66 कातन्त्ररूपमाला . स्त्रीशब्दो वा धातुवद्भवति अम्शसो: परत: / स्त्रीम्, स्त्रियम् / स्त्रियौ / स्त्री:, स्त्रिय: / स्त्रिया / स्त्रीभ्याम् / / स्त्रीभिः / स्त्रियै / स्त्रीभ्याम् / स्त्रीभ्यः / स्त्रिया: / स्त्रीभ्याम् / स्त्रीभ्यः / स्त्रिया: / स्त्रियोः / स्त्रीणाम् / स्त्रियां। स्त्रियोः / स्त्रीष // श्रीशब्दस्य त भेदः / श्रीः। ईदतोरियुवौ स्वरे इति स्वरादावियादेशः / श्रियौ। श्रियः। अनित्यनदीत्वात्संबुद्धौ ह्रस्वो नास्ति / हे श्री: / हे श्रियौ। हे श्रियः / श्रियम्। श्रियौ / श्रिय: / श्रिया। श्रीभ्याम् / श्रीभिः / डवत्सु-नद्या ऐआसासाम् / पश्चादीदूतोरियुवौ स्वरे / नदीपक्षे ऐआसादयः / श्रियै, श्रिये / श्रीभ्याम् / श्रीभ्यः / श्रिया, श्रियः / श्रीभ्याम् / श्रीभ्य: / श्रिया, श्रियः / श्रियोः / आमि / स्त्र्याख्यावियुवौ वामि // 233 // याख्यावियवस्थानिनौ आमि परे वा नदीसंजौ भवतः सिद्ध सत्यारम्भो नियमाय। किं नदीवत्कार्यं आमि च नुः इति नुरागमः / अन्यत्र “ईदूतोरियुवौ स्वरे” इति इय् उत् / श्रीणाम्, श्रियाम् / श्रियाम्, श्रियि / श्रियोः / श्रीषु / लक्ष्मीशब्दस्य तु भेदः / लक्ष दर्शनाङ्कनयोः। धातुवत् होने से स्त्रियम् और स्त्रिय: बना तथा नदीसंज्ञक में 'अम् शसोरादिलॊपम्' से 'अ' का लोप होकर स्त्रीम्, स्त्री: बना। स्त्री+टा=स्त्रिया। स्त्री+डे, ङसि आदि / 'ह्रस्वश्च ङवति' इस सूत्र से डे आदि के आने पर विकल्प से नदी संज्ञा होती थी किन्तु इस विकल्प को ही बाधित करने के लिये 'स्त्री नदीवत्' यह २३०वाँ सूत्र लगा था अत: यहाँ विकल्प का निषेध होने से स्त्री शब्द में डे आदि के आने पर धातूवत् कार्य होकर इय भी हआ और नदी संज्ञा होने से विभक्तियों को ऐ आस आस आम् भी हुआ तो स्त्रिय् + ऐ= स्त्रियै स्त्रिय् + आस् = स्त्रिया:, स्त्रिया:, स्त्रियाम् बन गया। सर्वत्र स्वर वाली विभक्ति के आने पर ई को इय् हुआ है। . स्त्री स्त्रियौ स्त्रियः / स्त्रियै स्त्रीभ्याम् स्त्रीभ्यः हे स्त्रि! हे स्त्रियौ ! हे स्त्रियः! | स्त्रियाः स्त्रीभ्याम् स्त्रीम् , स्त्रियम् स्त्रियो स्त्रीः स्त्रियः स्त्रियाः स्त्रियोः स्त्रीणाम् स्त्रिया स्त्रीभ्याम् स्त्रीभिः / स्त्रियाम् . स्त्रियोः .. स्त्रीषु श्री शब्द में कुछ भेद हैं। श्री+सि= श्री: श्री+ औ 'ईदूतोरियुवौ स्वरे' इस सूत्र से इय् आदेश होकर श्रियौ, श्रिय: आदि। संबोधन में -श्री + सि श्री शब्द की नदी संज्ञा अनित्य है; अत: संबोधन में ह्रस्व नहीं होगा अंत: हे श्रीः ! बना। श्री + डे, ङसि आदि। नदी संज्ञा होने पर ऐ, आस्, आस्, आम् आदेश होकर इय् आदेश हो जाता है / तब ‘श्रियै' और जब नदी संज्ञा नहीं हुई इय् होकर श्रिये बना। श्री+आम् आम् विभक्ति के आने पर स्त्रीलिंग में इय् उव् स्थानीय शब्दों की नदी संज्ञा विकल्प से होती है // 233 // किसी कार्य के सिद्ध होने पर भी जो पुन: सूत्र का आरंभ होता है वह नियम के लिये होता है। नदीवत् कार्य क्या है ? 'आमि च नुः' इस सूत्र से नु का आगम होकर न् को ण् होकर श्रीणाम् बना, अन्यत्र इय् आगम होकर श्रियाम् बना / श्री + ङि नदी संज्ञा होने पर श्रियाम्, अन्यत्र श्रियि बनेगा। श्रीः श्रियौ श्रियः / श्रियै, श्रिये श्रीभ्याम् श्रीभ्यः हे श्रीः ! हे श्रियो ! हे श्रियः ! श्रियाः, श्रियः श्रीभ्याम् : श्रीभ्यः श्रियम् श्रियौ श्रियाः, श्रियः श्रियोः श्रीणाम,श्रियाम श्रीभ्याम् श्रीभिः / श्रियाम्, श्रियि श्रियोः श्रीषु। . स्त्रीभ्यः श्रियः श्रिया