________________ स्वरान्ता: स्त्रीलिङ्गाः मही मन्दाकिनी गौरी सखी भागीरथी नदी। पुरी नारी पुरन्ध्री च सैरन्ध्री सुरसुन्दरी // 1 // मृगी वनचरी देवी शर्वरी वरवर्णिनी। सिंही हैमवती धात्री धरित्रीत्येवमादयः // 2 // स्त्रीशब्दस्य तु भेदः / सौ स्त्री नदीवत् // 230 // स्त्रीशब्दो नदीवद्भवति विभक्तौ परत: / स्त्रीशब्दस्य पृथक्नदीसंज्ञाकरणं किमर्थं ? ह्रस्वश्च ङवति वा इति सूत्रोक्तविकल्पनिषेधार्थम् / स्त्री। स्त्री च॥२३१॥ स्त्रीशब्दौ धातुवद्भवति विभक्तिस्वरे परे / स्त्रियौ / स्त्रियः / हे स्त्रि / हे स्त्रियौ। हे स्त्रियः / वाम्शसौः // 232 // नद्योः 'नद्या ऐ आसासाम्' इस २२२वें सूत्र से डे को ऐ ङसि को आस्, ङस् को आस् और ङि को आम आदेश हो जाता है पुन: ‘इवणों यमसवणे' इत्यादि से संधि होकर नौ, नद्या, नद्याः, नद्याम् बना। नदी नद्यौ नद्यः | नद्यै नदीभ्याम् नदीभ्यः हे नदि ! हे नद्यौ ! हे नद्यः ! | नद्याः नदीभ्याम् नदीभ्यः नदीम् नद्यौ नदीः / नद्याः नदीनाम् नद्या नदीभ्याम् नदीभिः / नद्याम् नद्योः नदीषु इसी प्रकार से गौरी, गांधारी आदि शब्दों के रूप चलेंगे। श्लोकार्थ–मही, मंदाकिनी, गौरी, सखी, भागीरथी, नदी, पुरी, नारी, पुरन्धी, सैरन्ध्री, सुरसुन्दरी, मृगी, वनेचरी, देवी, शर्वरी, वरवर्णिनी, सिंही, हैमवती, धात्री, धरित्री इन शब्दों को आदि में लेकर बहुत से शब्द हैं जो नदीसंज्ञक हैं और नदीवत् चलते हैं // 1-2 // . स्त्री शब्द में कुछ भेद है। - स्त्री+सि विभक्तियों के आने पर स्त्री शब्द नदीवत् हो जाता है // 230 // स्त्री शब्द को नदी संज्ञा पृथक् रूप से क्यों की ? 'ह्रस्वश्च ङवति वा' २२१वें सूत्र में कहे गये विकल्प का निषेध करने के लिये। स्त्री + सि—सि का लोप होकर स्त्री। स्त्री+औ - स्वर वाली विभक्ति के आने पर स्त्री शब्द धातुवत् हो जाता है // 231 // स्त्री शब्द को धातुवत् कर लेने के बाद 'ईदूतोरियुवौ स्वरे' इस १८९वें सूत्र से धातु के ईकार ऊकार, को इय् उव् आदेश हो जाता है। अत: स्त्रिय् + औ= स्त्रियौ, स्त्रिय: बन गया। संबोधन में ह्रस्व होकर हे स्त्रि ! आदि / स्त्री+ अम, स्त्री+ शस् अम् शस् विभक्ति के आने पर स्त्री शब्द धातुवत् विकल्प से होता है // 232 //