________________ 64 कातन्त्ररूपमाला __तौ तिसृ चतसृ आदेशौ रं प्राप्नुतो विभक्तौ स्वरे परे / तिस्रः / हे तिस्रः / तिस्रः / तिसृभिः / तिसृभ्यः / तिसृभ्यः / न नामि दीर्घम // 225 // तौ तिसृ चतसृ आदेशौ दीर्घत्वं न प्राप्नुवत: सनावामि परे / तिसृणाम् / तिसृषु / इति इकारान्तः / ईकारान्त: स्त्रीलिङ्गो नदीशब्दः / .ईदूतो स्त्र्याख्यौ नदी // 226 // स्त्र्याख्यावीदूतौ नदीसंज्ञौ भवतः। ईकारान्तात्सिः // 227 // नदीसंज्ञकादीकारान्तात्परः सिर्लोपमापद्यते। नदीसंज्ञादन्तग्रहणाधिक्यानदाद्यञ्चीत्यादिना विहितादीकारात्पर: सिल्लोपमापद्यते / नदी। नद्यौ / नद्यः / संबुद्धौ ह्रस्वः / / 228 // नद्या: संबुद्धौ ह्रस्वो भवति / हे नदि / हे नद्यौ / हे नद्यः / ___अम्शसोरादिलोपम् // 229 // नदीसंज्ञकात्परयो: अम्शसोरादिलोपमापद्यते / नदीम् / नद्यौ / नदी: / नद्या / नदीभ्याम् / नदीभिः / ङवत्सु / नद्या ऐआसासामित्यादयः / नौ / नदीभ्याम् / नदीभ्यः / नद्या: / नदीभ्याम् / नदीभ्यः / नद्याः / नद्यो: / नदीनाम् / नद्याम् / नद्योः / नदीषु / एवं गौरी गान्धारी वाणी भारती गायत्री सावित्री सरस्वती गोमती गोमिनी भामिनि क्राष्ट्री महिषी मही प्लवी सौरभेयी प्रभृतयः / / तिसृ + अस् = तिस्रः, चतस्रः / तिसृ + शस्= तिस्रः। तिसृ+ भि: = तिसृभिः / तिसृ+ आम् नु का आगम न् को ण् हुआ। सु नु आम् विभक्ति के आने पर तिस, चतसृ आदेश क्र को दीर्घ नहीं हुआ // 225 // तो तिसृणाम् बना। इस प्रकार से इकारांत शब्द हुये। अब ईकारांत स्त्रीलिंग नदी शब्द है। स्त्रीलिंग के ईकारांत और ऊकारांत शब्दों को 'नदी' यह संज्ञा हो जाती है // 226 // नदी+सि नदी संज्ञक ईकारांत से परे 'सि' का लोप हो जाता है // 227 // नदी संज्ञक से और अंत ग्रहण की अधिकता से 'नदाद्यञ्ची' इत्यादि सूत्र से किये गये ईकार प्रत्यय से परे सि का लोप हो जाता है। नदी, नदी + औ 'इवों यमसवणे' इत्यादि सूत्र से संधि होकर नद्यौ बना / सम्बोधन में नदी + सि संबुद्धि सि के आने पर नदी संज्ञक को ह्रस्व हो जाता है // 228 // पुन: ‘ह्रस्व नदी श्रद्धाभ्य: सिर्लोपम्' सूत्र से नदी संज्ञक से संबोधन में सि का लोप हो गया। हे नदि ! हे नद्यौ ! हे नद्यः ! नदी+अम्, नदी+शस् नदी संज्ञक से परे अम् और शस् के आदि के 'अ' का लोप हो जाता है // 229 // नदीम्, नदी:। नदी+टा संधि होकर नद्या बना। नदीभ्याम्, नदीभि: नदी+ डे आदि चार विभक्तियाँ हैं।