________________ '26 कातन्त्ररूपमाला विरामे वा // 12 // __ पदान्तो मकारोऽनुस्वारमापद्यते न वा विरामे। देवानां, देवानाम् / पुरुषाणां, पुरुषाणाम् / देवं, देवम् // त्वम् करोषि / त्वम् चरसि / त्वम् टीकसे / त्वम् तरसि / त्वम् पचसि / इति स्थिते। वर्गे तद्वर्गपञ्चमं वा॥९॥ पदान्तो मकारो वर्गे परे तद्वर्गपञ्चममापद्यते न वा। त्वङ्करोषि, त्वं करोषि / त्वञ्चरसि / त्वं चरसि / त्वण्टीकसे, त्वं टीकसे / त्वन्तरसि, त्वं तरसि / त्वम्पचसि, त्वं पचसि // त्वम् यासि / त्वम् वरसि / त्वम् लोकसे। इति स्थिते। यवलेषु वा // 94 // पदान्तोमकार: पररूपमापद्यते वा यवलेषु परतः / त्वँय्यासि, त्वं यासि / त्वॅव्वरसि, त्वं वरसि। त्वॅल्लोकसे, त्वं लोकसे॥ . ॥इति व्यञ्जनसंधिः / / ____ अथ विसर्जनीयसन्धिरुच्यते क: चरति / क: छादयति / इति स्थिते। विराम में पदांत मकार का अनुस्वार विकल्प से होता है // 92 // . जिस पद के आगे दूसरा पद न हो उसे विराम कहते हैं। जैसे देवानाम् में म् विराम-मंस में है इसको अनुस्वार हुआ तो देवानां अथवा देवानाम् / पुरुषाणां, पुरुषाणाम् / देवं, देवम्। विशेष यह वैकल्पिक नियम इस कातंत्र व्याकरण के अतिरिक्त अन्यत्र किसी भी व्याकरण में नहीं है, सर्वत्र विराम में अनुस्वार न करने का विधान है अत: इसी व्याकरण में यह विशेष नियम हैं। त्वम् + करोषि, त्वम् + चरसि इत्यादि / आगे वर्ग के परे पदांत मकार को उसी वर्ग का पंचम अक्षर विकल्प से हो जाता है // 13 // त्वङ्करोषि, विकल्प में ९१वें सूत्र से अनुस्वार होकर त्वं करोषि बना / तथैव त्वञ्चरसि, त्वं चरसि / त्वम् + टीकसे = त्वण्टीकसे, त्वं टीकसे। त्वम् + तरसि= त्वन्तरसि, त्वं तरसि / त्वम् + पचसि = त्वम्पचसि, त्वं पचसि / त्वम् + यासि / य, व, ल के आने पर पदांत मकार विकल्प से पर रूप हो जाता है // 94 // त्वम् + यासि = त्वय्यासि, त्वं यासि। त्वम् + वरसि= त्वव्वरसि, त्वं वरसि। त्वम् + लोकसे= त्वल्लोकसे, त्वं लोकसे। ॥इस प्रकार से व्यंजन संधि पूर्ण हुई // अथ विसर्ग संधि विसर्ग संधि किसे कहते हैं ? विसर्ग से परे व्यंजन या स्वर के आने पर जो सम्बन्ध या परिवर्तन होता है उसे विसर्ग संधि कहते हैं। क:+चरति / 1. सन्निधानात्सानुनासिकस्य मस्य स्थाने सानुनासिका एव यवलाः।