________________ व्यञ्जनसंधि जझञशकारेषु अकारम्॥८८॥ पदान्तो नकारो जझबशकारेषु परेषु जकारमापद्यते / भवाञ्जयति / भवाञ्झषयति / भवावकारेण। भवाशेते // कुर्वन् शूरः / उभयविकल्पे वैरूप्यम् / इति स्थिते। . शि न्चौ वा // 89 // पदान्तो नकारो चौ वा प्राप्नोति शकारे परे। तवर्गश्चटवर्गयोगे चटवर्गों। इति पञ्चम: स्यात् / कुर्वशूरः कुर्वञ्च्छूर: कुर्वशूरः // भवान् डीन: / भवान् ढौकते / भवान् णकारेण / इति स्थिते। डढणेषु णम्॥१०॥ अत्र वा स्मर्यते। पदान्तो नकारो णकारमापद्यते डढणेषु परतः। भवाण्डीनः। भवाण्डौकते। भवाण्णकारेण // त्वम् लुनासि / त्वम् रमसे / त्वम् यासि / त्वम् वससि / इति स्थिते / मोऽनुस्वारं व्यञ्जने // 11 // पदान्तो मकारोऽनुस्वारमापद्यते व्यञ्जने परे। त्वं लुनासि / त्वं रमसे। त्वं यासि / त्वं वससि। (सम्राट् संज्ञायाम्) सम्पूर्वात् राजतेश्च क्विप्यनुस्वाराभावो निपात्यते / सम् राजते सम्राट् // ज, झ, ञ और श के आने पर पदांत नकार बकार हो जाता है // 88 // भवाञ्जयति, भवाञ्झषयति, भवाञकारेण, भवाशेते / कुर्वन् + शूरः / दो प्रकार से विकल्प होने से इसके तीन रूप बनेंगे। आगे शकार के आने पर पदांत नकार विकल्प से 'न च' हो जाता है॥८९॥ अर्थात न के पास च का आगम हो जाता है। अत: कर्वन च+शरः बना पन: "तवर्गश्चटवर्गयोगे चटवर्गों" इस २९२वें सूत्र से पदांत तवर्ग, चवर्ग और टवर्ग के योग में चवर्ग, टवर्ग बन जाता है अर्थात् यदि चवर्ग का योग है तो तवर्ग भी चवर्ग हो जाता है और यदि आगे टवर्ग है तो पदांत तवर्ग भी टवर्ग हो जाता है तथा पूर्व में जो अक्षर है उसी के समान होता है जैसे यहाँ न् तवर्ग का अंतिम अक्षर है तो उसे चवर्ग का अंतिम अक्षर '' करेंगे। इस नियम से एक रूप—'कुर्वञ्च्शूरः' बना / 'वर्गप्रथमेभ्यः' इत्यादि.७१वें सूत्र से शकार को विकल्प से छकार होकर दूसर रूप-'कुर्वञ्छूरः' / उपर्युक्त ८८वें सूत्र से 'कुर्वशूरः' ऐसे तीन रूप बन गये। * भवान् + डीन:, भवान् + ढौकते। ड ढ ण के आने पर पदांत नकार को णकार हो जाता है // 90 // भवाण्डीन:, भवाण्ढौकते, भवाण्णकारेण / त्वम् + लुनासि इत्यादि / व्यंजन के आने पर पदांत मकार को अनुस्वार हो जाता है // 91 // त्वं लुनासि, त्वम् + यासि = त्वंयासि, त्वम् + रमसे = त्वं रमसे, त्वम् + वससि त्वं वससि / सम्राट् इस नाम वाचक शब्द में अनुस्वार नहीं होता है। अर्थात् सम उपसर्गपूर्वक राजते धातु है। क्विप् प्रत्यय के होने पर कृदंत प्रकरण में यह सम्राट् शब्द बना है अत: क्विप् प्रत्यय के निमित्त अनुस्वार का न होना निपात से सिद्ध है अत: सं राजते इति 'सम्राट्' में अनुस्वार नहीं हुआ। देवानाम् इत्यादि।