________________ व्यञ्जनसन्धिः बहवचनान्तममीरूपं स्वरे परे प्रकृत्या तिष्ठति // आगच्छ भो देवदत्त 3 अत्र / उत्तिष्ठ भो यज्ञदत्त 3 इह / आयाहि भो विष्णुमित्र 3 इह / इति स्थिते। अनुपदिष्टाश्च // 66 // अक्षरसमाम्नायेऽनुपदिष्टा: प्लुता: स्वरे परे प्रकृत्या तिष्ठन्ति // सुश्लोक 3 इति / इति स्थिते / नेतौ // 67 // प्लुतस्य इतिशब्दे परे सन्धिकार्यनिषेधो न भवति / अहो सुश्लोकेति / दूरादाबाने गाने रोदने च प्लुतास्ते लोकत: सिद्धाः / उक्तं च एकमात्रो भवेद्धस्वो द्विमात्रो दीर्घ उच्यते / त्रिमात्रस्तु प्लुतो ज्ञेयो व्यञ्जनं चार्द्धमात्रकम् // 1 // __॥इति प्रकृतिभावसन्धिः // अथ व्यञ्जनसन्धिरुच्यते वाक् अत्र / वाक् जयति / अच् अत्र / अच् गच्छति / षट् अत्र / षट् गच्छन्ति / तत् अत्र / तत् गच्छति / ककुप् आसते / ककुप् जयति / इति स्थिते। अमी अश्वा: आदि ऐसे ही रह गये। आगच्छ भो देवदत्त ! अत्र उत्तिष्ठ भो यज्ञदत्त ! इह, आयाहि भो विष्णुमित्र इह ! अनुपदिष्ट से परे स्वर के आने पर भी संधि नहीं होती है // 66 // अक्षरों के समुदाय में नहीं कहे गये जो प्लुत स्वर हैं उनसे परे स्वर के आने पर संधि नहीं होती है। अत: उपर्युक्त वाक्य वैसे ही रह गये। सुश्लोक 3 इति . प्लुत से परे इति शब्द के आने पर संधि हो जाती है // 67 // . अत: अहो ! सुश्लोक + इति = सुश्लोकेति-हे अच्छे 'श्लोक ! इस प्रकार से—प्लुत किसे कहते हैं ? - दूर से बुलाने में संबोधन में, गाने में और रोने में प्लुत संज्ञा होती है और प्लुत में तीन मात्रायें मानी जाती हैं। इसी को श्लोक में स्पष्ट किया है श्लोकार्थ—जिसमें एक मात्रा है उसे ह्रस्व कहते हैं। जिसमें दो मात्रायें हैं उसे दीर्घ कहते हैं। जिसमें तीन मात्रायें हैं उसे प्लुत कहते हैं एवं जिसमें अर्द्ध मात्रा हो उसे व्यंजन कहते हैं। ॥इस प्रकार से प्रकृतिभाव संधि पूर्ण हुई / अथ व्यंजन संधि व्यंजन संधि किसे कहते हैं ? व्यंजन के साथ स्वर या व्यंजन, के संश्लेष होने में जो व्यंजन में परिवर्तन होता है उसे व्यंजन संधि कहते हैं। १.कीर्तिवाला।