________________ 18 कातन्त्ररूपमाला द्विवचनमनौ // 12 // अनौभूतं द्विवचनं स्वरे परे प्रकृत्या तिष्ठति // . मणीवादीनां वा॥६३॥ मणीवादीनां वा सन्धिर्भवति / मणी इव मणीव / जम्पती इव जम्पतीव / अमुके अत्र तिष्ठतः / इति स्थिते। न साकोऽदसः // 64 // साक: अदस: परमनौभूतं द्विवचनं स्वरे परे प्रकृत्या न तिष्ठति। अमुकेऽत्र तिष्ठतः // अमी अश्वाः // अमी एडका: / अमी उष्ट्राः / अमी आदित्यरश्मयः / इति स्थिते। . बहुवचनममी॥६५॥ ईषत् अर्थ में -आ+ उष्णं =ओष्णं-किंचित् गरम / क्रिया योग में आ+ इहि = एहि-आओ। मर्यादा अर्थ में आ+ उदकांतात् = ओदकांतात् = ओदकांत्-जल के पहले तक। अभिविधि अर्थ में आ+ आर्येभ्यः =आर्येभ्यः-सभी आर्य पुरुषों तक श्री स्वामी का यश व्याप्त है। वाक्य अर्थ में-आ+ एवं = आ एवं-आ: तुम इस प्रकार से मानते हो। स्मरण अर्थ में आ एवं–हाँ ! इसी प्रकार से वह है। सूत्र में 'ओदंता' पद में जो अन्त शब्द ग्रहण किया गया है वह ओ, अ आदि सभी को एक-एक को ही सूचित करता है। कवी + एतौ, माले + इमे औ को छोड़कर यदि अन्य स्वर वाले द्विवचन' पूर्व में हैं और आगे स्वर है तो संधि नहीं होती है // 62 // अर्थात् औकार को छोड़कर जो अन्य रूप को प्राप्त हो गये हैं ऐसे द्विवचन स्वर से परे संधि नहीं होती है। कवी-एतौ, माले-इमे ही रह गया। मणी + इव, जंपती + इव। . मणि आदि शब्दों के द्विवचन से परे इव शब्द के आने पर विकल्प से प्रकृतिभाव होता है // 63 // .. मणी + इव संधि होकर = मणीव, अन्यथा मणी इव, जम्पतीव, जम्पती इव दोनों बन गये। अमुके+अत्र। अदस् शब्द में यदि 'अक' का आगम हुआ है तो द्विवचन में औ न होते हुए भी संधि हो जाती है // 64 // अमुके+अत्र =अमुकेऽत्र बना। अमी+अश्वा:, अमी+ एडका:, अमी+ उष्ट्राः, अमी+आदित्यरश्मयः। बहुवचन के अमी शब्द से परे स्वर के आने पर संधि नहीं होती है // 65 // १.औकार रूपं परित्यज्य रूपान्तरं प्राप्तमित्यर्थः। २.द्विवचनांत /