________________ स्वरसन्धिः इवों यमसवणे न च परो लोप्यः // 44 // इवर्णो यमापद्यते असवणे परे न च परो लोप्य: / दध्यत्र / नद्येषा // मधु अत्र / वधू आसनम् / इति स्थिते। वमुवर्णः // 45 // उवों वमापद्यते असवणे परे न च परो लोप्य: / मध्वत्र / वध्वासनम् / / पितृ अर्थ: / मातृ अर्थः / इति स्थिते। रमृवर्णः // 46 // ___ ऋवर्णो रमापद्यते असवणे परे न च परो लोप्य: / पित्रर्थ: / मात्रर्थ: / / लु अनुबन्ध: / लू आकृतिः / इति स्थिते। लम्लुवर्णः // 47 // अर्थात् 'उवणे ओ' से 'ओ' होना चाहिये था किन्तु इस स्वतंत्र सूत्र से औ हो गया तो अक्ष औ+हिनी = अक्षौहिनी बना पुन: 'रघुवर्णेभ्यो' इत्यादि सूत्र से 'न' को 'ण' होकर अक्षौहिणी हो गया। प्र से परे ऊढ: और ऊढिः शब्द के आने पर 'अ' को 'औ' होकर 'ऊ' का लोप हो जाता है। * औ+ ढ: = प्रौढ, पू औ+ ढि:= प्रौढिः / प्र से परे एष: और एष्य: के आने पर 'अ' को 'ऐ' होकर पर का लोप हो गया। अ+ एषः, प्र ऐ+ ष: = प्रैषः, ऐ+ष्यः = प्रैष्य: बना / दधि+ अत्र, नदी + एषा / इवर्ण से परे-आगे असवर्ण वर्ण के आने पर इवर्ण को 'य' होता है और पर का लोप नहीं होता है // 44 // दध् इ+ अत्र, दध् य् + अत्र 'व्यञ्जनमस्वरं परवर्णं नयेत्' इस सूत्र से स्वर रहित व्यंजन अगले स्वर में मिल जाते हैं तो दध्यत्र बन जाता है। नद् य् + एषा= नद्येषा। मधु + अत्र, वधू+आसनम् / उवर्ण को 'व्' हो जाता है // 45 // यदि आगे उवर्ण न होकर असवर्ण स्वर हों तो उवर्ण को 'व्' होकर अगले स्वर का लोप नहीं होता है जैसे मध् उ+ अत्र, मध् +अत्र=मध्वत्र, वध् ऊ+आसनम् = वध्वासनम्। पितृ + अर्थ;, मातृ + अर्थ: / ऋवर्ण को 'र' हो जाता है // 46 // असवर्ण स्वर के आने पर-पित् +अर्थ; पित् + अर्थः = पित्रर्थः, मात् + अर्थ: = मात्रर्थ: / लु+ अनुबंध:, लू+आकृति: / असवर्ण स्वर के आने पर लवर्ण को 'ल' हो जाता है // 47 // १.प्र+ऊहः इत्यादि में भी ओ की प्राप्ति थी।