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सिद्ध तहा अनन्त और जहा अनन्त वहा एक सिद्ध, इसलिए सिद्धो में अन्तर नही ।
नव तत्व
अल्प बहुत्व द्वार :
सबसे कम नपुंसक सिद्ध, उससे सख्यात गुणित स्त्रीसिद्ध और उससे संख्यात गुणित पुरुष सिद्ध । एक समय मे नपु सक १० स्त्री २० और पुरुष १०८ सिद्ध होते है ।
मोक्ष मे कौन जाते है :
१ भव्य सिद्धक २ बादर ३ त्रस ४ सज्ञी ५ पर्याप्ती ६ वज्रऋषभनाराच सघयणी ७ मनुष्य गतिवाले ८ अप्रमादी ६ क्षायिक सम्यक्त्वी १० अवेदी ११ अकषायी १२ यथाख्यातचारित्री १३ स्नातक निर्ग्र थी ९४ परम शुक्ल लेश्यी १५ पडित वीर्यवान् १६ शुक्ल ध्यानी १७ केवलज्ञानी १८ केवलदर्शनी १६ चरम शरीरी इस तरह १६ बोल वाले जीव मोक्ष में जाते है । जघन्य दो हाथ की उत्कृष्ट ५०० धनुष्य की अवगाहना वाले जीव मोक्ष मे जाते है, जघन्य नव वर्ष के उत्कृष्ट क्रोड़ पूर्व के आयुष्यवाले कर्मभूमि के जीवमोक्ष में जाते है। जब सबकर्मो से आत्मामुक्त होवे तव वह अरूपी भाव को प्राप्त होती है, कर्म से अलग होते ही एक समय में लोक के अग्र भाग पर आत्मा पहुँच कर अलोक को स्पर्श कर रह जाती है । अलोक मे नही जाती, कारण कि वहा धर्मास्तिकाय नही होती इसलिए वहा स्थिर हो जाती है । दूसरे समय में अचल गति प्राप्त कर लेती है । वहा से न तो चव कर कोई आती और न हलन चलन की क्रिया होती, अजर अमर, अविनाशी पद को प्राप्त हो जाती व सदा काल आत्मा अनंत सुख की लहरो में निमग्न रहती है ।