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१९०६] . उपदेशकशास्त्री पनालालजीका प्रवास.
११३ ओर कोई भी अवाचक जानवर कसाईको न देनेके खातर बंदोबस्तके लिये भार रखकर भलामण करने में आई, आगेवानी भोगनेकी खरी खुबी ऐसे शुभः कृत्यों के उपर खरोखर आघार रखती है. ऐसा सरल शब्दोंमें दर्शाय दिया था, इसमोकेपर अंजारवाले पुरुषोत्तमदासने जाहेर किया की, जीवदयाके ठरावके लिये तुम लोक यदि काठीयावाड रोहिशाळा जैसा भरवाडोंका मेळा भरने को चाहना रखो तो, हम लोकभी भोजनादि खरचको कुछ मदद देंगे यह सर्व सुनकर भरवाड वकादिने महाराजश्रीको कहाकी हमारे लडके भाई आदि गुजरात देश गये है उनके आनेपर हम इस बातकी पुरेपुरी कोशिश करेंगे, इतना कहकर इस बातकी साक्षीरुप एकादशीके रोज रात्रिभोजन करनेकी भाविक भरवाडोने प्रतिज्ञा लिई, इसके उपरांत भरवाडणोने जुवां नहि मारनेका मंजुर कियाथा
कच्छ भद्रेश्वरजी तीर्थपर जैनीयोका महान मेळा. . यहांपरं हजारों वर्षका बनाहुवा बावन जिनालय जैनमंदिर है. जिसका जीर्णोद्धार ( ११२ दानशाळा ) लगाकर दुष्काळमें फसे हुवे, राजा, रंक, बादशाह आदिके संकट निवारक झघडुशाह शेठने किया, इस जीर्णोद्धारकोभी हुवेको आज सेंकडो वर्ष व्यतीत होगये है. ऐसा अदभुत तीर्थका मेळा फागण शुदी ५ को वर्षोवर्ष होता हैं. देवळके सबी शिखरोंपर घीकी वोलियांके साथ धजा, पताका चढाई जाती है, इस सालमें मेळापर, महाराज श्री हंसविजयादि ८ मुनिराज तथा दुसरे साधु साध्वीयों बहुतसें पधारें थे शुमार ' पंदर हजार आदमीका मेळा तिर्थयात्राके लिये मीलाथा, जिसमें हजारां ढुंढक भाई बाईयांने भी भाग लिया था, देवद्रव्यकी उपज सुमार १६००० कोरी हुई थी. शंवत १९६२ का चेत शुदी १ वार सोमवार.
ली. कुसुमका तरफसे धर्मलाभ वाचना. .
मु० मुद्रा बंदर.
उपदेशकशास्त्री पनालालजीका प्रवास. ता. ३१-३-६ तिलावद इलाके साजापूर, स्टेशन बेरछा भोपाल लाईन-धर्ममहोत्सव था उसमे पटेल पटवारी व महाजन बन्धु इकठे हुवे थे; समुदायके अत्याग्रहसे - मैने साथ मंगलाचरणके सर्व साधारणका विषय लेकर भाषण दिया और उस्से कान्फरन्स ( महासभा ) का उपकारकी फलश्रुति करी गई.. और कान्फरन्सके कर्तव्योंका अभिप्राय सूचित किया. द्वादश भावनाका सविस्तर वर्णन किया दो घंटेबाद कान्फरंसको धन्यवाद देकर सभा विसर्जन की ।