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जैन कान्फरम्स हरैल्ड. : . . [मे कर्तव्य छोडा नहीं और इहांके श्रावक लोक प्रथम तो विरुद्ध पक्षमें थे लेकिन परिणाममें सब एक दिल होकर सेठ लल्लुभाईको सहायता देने लगे, और काम पूरा करानेमें उद्युक्त हुवे. बाद शेठजीकी और श्रावकोंकी एक संमति होगई हकीकतमें जहांपर ऐक्यता होती है वहां बडा भारी कामभी अनायाससे होजाता है, और इस काममें गजधर सोमपुरानानूजी हुसेनबक्ष जीवनजी तथा लालु इन लोकोने अपनी तनख्वाहका खयाल न करते बहुत श्रम उठाया
और लल्लुभाईके दिलके मुवाफिक काम किया और छगनलालजी हिंगडनेभी इसमें बडा संकट पाया ओर लल्लुभाईके अनुकूल रहकर मंदिरोंका काम करानेमें कोशिश करते रहे. अहो भाग्य हे उनका के जो लोक एसे मुक्तिको देनेवाले कामोंमें मदत करते है. तन मन लगाते है उनका जीना सफल है. लल्लुभाई अपने सहायकोंको धन्यवाद देते है, और कान्फरंसके तरफसे में धन्यवाद देताहूंके जो लोक जीर्ण पुस्तकोद्धार, जीर्ण मंदिरोद्धार, जीवदया, शिक्षण और अनाश्रित साधर्मी भाइयोंको मदत करते है वे बढ भागी उत्तम पुरुष समझे जाते है. उनका धन कमाना सार्थक है, और जो धन पाकर उपरोक्त कामोंमें नहीं खरचते उनका जीना निरर्थक चमडे की भत्रा (धम्मन ) के समान हैं. इस प्रतिष्टामें रु. ३५०० इकठे हुवे है, पहले भी थोडासा भंडार है, सब मिलाकर उसकें आय लाभसें मंदिरोंकी पूजा अर्चा आदिका काम होते रहेंगे. मै सब लोकोंसे विनंति करताहूं के आप सर्व श्रावकश्राविका दररोज चोरासी ८४ अशातना टालकर मंदिरजी जाकर दरसन करेंगे. और अपना जीवन इस काममें लगावेंगे. इत्यलम् । .. ताः ९।५।६.
पण्डित पन्नालाल शास्त्री उपदेशक, जैन श्वेताम्बर कानफरंस.
देलवाडामें पंडीत पन्नालालका भाषण.
।नमोवीतरागाय। देलवाडा ( देवकुलपाटण ) देश मेवाडं. इला. उदयपुर. ता. २४।४।०६ मीती वैशाख सूदि १ मंगलवार संवत् १९६३ सायंकालके सात बजेसे जैनधर्मका व्याख्यान तथा जिन प्रतिमा विषयक
भाषण दिया गया. सहस्रावधि पुरुष, स्त्री, बालक, बालिका उस सभामण्डपमें विराजमानथे भगवानकी भक्ति होरहीथी यति लोक स्तवनावलिको वादित्रके साथ गायन कर रहेथे.
उस समय मङ्गलाचरण किया गयाअर्हन्तो ज्ञानभाजः सुरवरमहिताः सिद्धिसौधस्थसिद्धाः पंचाचारप्रवीणाः प्रगुण