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जन कान्फरन्स हरैल्ड..
। जून जिससे रोजी अच्छे होकर धन्य वाद दे जाते हैं। सुनियो यारो अन्न दान दे, जीव को भयसे बचाते हैं ॥ ७ ॥ रूपया पैसा खरच करै वो, कसाई से छुडवाते हैं। विविध प्रसंग कर अखबारोंमें, नई नई खबर सुनाते हैं ॥ ८॥ नवतत्वोंकी बातें लिख कर, हृदय ज्ञान जगाते हैं। पूजन इत्यादिक धर्म काममें, पैसा अधिक लगाते हैं ॥ ९॥ गुलाबचंदजी ढढा का पहिला उद्योग सराहते हैं। तन मन धन से करे परिश्रम, धर्म ध्वजा फहराते हैं ॥ १० ॥ धर्म काम के जो उद्योगी, उनको शीश नमाते हैं । मोतीलाल कहे धर्म दलाली, करके मुक्तिको जाते हैं ॥ ११ ॥
(श्री आत्मानंद जैन पत्रिका.)
राय सेठ चांदमलजी और “जैनोदय.” ____ इस पत्रके पुस्तक २ अङ्क ४ में " टुंढीयोंके कथनसे मूर्तिपूजा सिद्ध होती है। का एक आर्टिकिल है. उसमें टुंढीयोंकी मोरवी कोनफरेंसके प्रेसिडेंट राय सेट चांदमलजीके स्पीचका अवलोकन करते हुवे हमने यह राय प्रगट की थी कि " इस मंजूर की हुई मोरवी कोनफरन्सके प्रेसिडेंटकी स्पीचके मुवाफिक हमारे ढुंढीया भाई हमारे साथ होकर इस बातके निर्णय करनेका कि श्री. महावीर स्वामीके पश्चात् एक हजार वर्ष के अन्दर मूर्तिपूजा होतीथी यानही एक कमिशन निकालेंगे और उसके नतीजेके मुवाफिक अपना बरताव करेंगे, तो दोनों फिरकों में सम्प होते हुवे कुछभी देर नहीं लगेगी." इसका जबाब हमारे भाईबंद " जैनोदय" ने पुस्तक २ अंक ७ में इस प्रमाण दिया है:-" आ ( हरैल्ड) पत्रे नवा बर्षथी कोनफरन्सना खबरोनो ढंढेरो पिटवानुं काम छोडी दईने खंडन मंडननो उद्देश गृहण कों जणाय छे. ए पत्रना एप्रील मासना अङ्कमां " ढुंढीयोंके कथनसे मूर्तिपूजा सिद्ध होती है." ए लेखना जबाबमां लखवानुं जे-रायसेठ चांदमलजीना भाषणना शब्दो ऊपर कोईए टीका करी नथी, ते ऊपरथी समस्त स्थानकवासी कोम ए शब्दो स्वीकारे छे, अने ए शब्दो सत्यज छे, एम कांई मानवानुं नथी. परन्तु खरी वात तो ए छे के- भस्मग्रह महावीर स्वामी मोक्ष पहोंच्या वखते बेठो छ जे वात मूल पाठ ऊपरथी सिद्ध थाय छे अने सत्तावीस पाटो सुधि शुद्धाचारज हतो ए वात पण असत्य छे. ते वखते केटलोक अशुद्ध आचार पण हतो. निगम नामना ग्रंथ ऊपरथी सिद्ध थाय छे के तेटला वखत सुधिमां साकल नामना साधुए मूर्तिपूजको साथे विवाद चलाव्या हतो. लोंकाशा, लखमसी सेठ तथा लींबडी विषेनी हकीकतः