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॥ ॐनमः सिद्धेभ्यः॥
यः संसारनिरासलाळसमीतमुक्त्यर्थमुत्तिष्टते, यं तीर्थ कथयंति पावनतया येनाऽस्ति नान्यः समः॥ यस्मै तीर्थपतिनमस्यति सतां यस्माच्छुभं जायते,
स्फूर्तियस्य परावसंति च गुणा यस्मिन्स संघोऽर्च्यतां ॥ અથે–જે સંધ, સંસારના ત્યાગને વિષે ઈચ્છાવાળી છે બુધ્ધિ જેની, એવો છતાં મુક્તિના સાધનને માટે સાવધાન થાય છે, વળી જે પવિત્રપણાએ કરીને તીર્થરૂપ કહેવાય છે, જેના સમાન બીજે કઈ નથી, જેને તીર્થકર મહારાજા પણું વ્યાખ્યાનને અવસરે “નમો તિથ્થસ” કહી નમસ્કાર કરે છે, જેનાથી સજીનેનું કલ્યાણ થાય છે, જેને ઉત્કૃષ્ટ મહિમા છે, અને જેનામાં (અનેક) ગુણ रहे थे, सेवा संधी, (डे भव्य ७ ) पूल २.
The Jain ( Swetamber.) Conference Herald.
Vol. II.]
June 1906.
[No. VI.
जैन श्वेताम्बर कोनफरन्स की स्तुति. कोनफरन्स श्वेताम्बर का हम कुछ कुछ हाल सुनाते हैं । टेक॥ धर्म काम की खातिर यारो, लाखों रूपये लगाते हैं। तन मन धन से करे परिश्रम, जीव दया फैलाते हैं ॥ १॥ जीर्ण मन्दिर और जीर्ण शास्त्र का उद्धार कराते हैं। उमदा उमदा ग्रंथ बनाकर, जिन मत वृद्धि कराते हैं ॥२॥ भेज भेज उपदेशक भाई, वो उपदेश कराते हैं। स्कालरशिप दे लडकों को उनको योग्य बनाते हैं ॥३॥ नई नई शाला खुलवाकर, लडकों को पढवाते हैं। जाति उन्नत्ति धर्म उन्नति को वो दिलसे चाहते हैं ॥ ४ ॥
और कुरीति राह रस्मको, जहां तक होवे घटाते हैं। शुद्ध चीज बनवा बनवा कर, सस्ते मूल्य विकाते हैं ॥ ५ ॥ भ्रष्ट होते बचे लोग सब, अपने मनमें चाहते हैं । औषध शाला खोल खोल कर, औषध दान कराते हैं ॥६॥