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॥ ॐनमः सिद्धेभ्यः॥
यः संसारनिरासलाळसमतिर्मुक्त्यर्थमुत्तिष्ठते, यं तीर्थ कथयति पावनतया येनाऽस्ति नान्यः समः॥ यस्मै तीर्थपतिनमस्यति सतां यस्माच्छुभं जायते,
स्फूर्तियस्य परावसंति च गुणा यस्मिन्स संघोऽर्च्यतां ॥ અર્થ –જે સંધ, સંસારનો ત્યાગને વિષે ઇચ્છાવાળી છે બુધ્ધિ જેની, એ છતાં મુક્તિના સાધનને માટે સાવધાન થાય છે, વળી જે પવિત્રપણાએ કરીને તીર્થરૂપ કહેવાય છે, જેના સમાન બીજો કોઈ નથી, જેને તીર્થકર મહારાજા પણ વ્યાખ્યાનને અવસરે “નમ તિર્થસ” કહી નમસ્કાર કરે છે, જેનાથી સૌનું કલ્યાણ થાય છે, જેને ઉત્કૃષ્ટ મહિમા છે, અને જેનામાં (અનેક) ગુણ रहे थे, सेवा संवनी, ( लव्य !) पू०॥ ४२१.
The Jain ( Swetamber) Conference Herald.
Vol. II.]
September. 1906.
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[No. Ix.
" श्रीमारवाड प्रान्तिक कोनफरेन्स" की
संक्षिप्त रीपोर्ट,
( खास हरेल्डके लिये ) मारवाड देशमें मेडतारोड स्टेशनके पास श्रीफलोधी पार्श्वनाथजीका एक प्राचीन विशाल मन्दिर है. मारवाडका यह एक मोटा तीर्थ है. प्रतिमाजीको प्रगट हुवे करीब ९०० वर्षका अरसा हुवा है. इस तीर्थपर वार्षिकोत्सव मारवाडी आसोज वुदि ९,१० को हुवा करता है जिस समयपर समयानुसार दस पंदरह बल्कि बीस पचीस हजार यात्रि इकठे हो जाते हैं. सम्वत १९५६ की सालमें इस तीर्थपर "श्रीफलोधी तन्नित्ति समा” कायम की गई उसके पश्चात् करीब दस हजार रुपया लगाकर यात्रियोंके आरामके वास्ते नवीन कोठडीयां बनवाई गई और प्रथम जैन श्वेताम्बर कोनफरेन्सका जलसा भी इस ही तीर्थ भूमीपर हुवा–महासभाकी सूचनाके मुवाफिक गुजरात
और दक्षिणमें प्रन्तिक सभायें हुई उसही मुवाफिक मारवाड प्रान्तिक सभा करनेका भी विचार बहूत दिनोंसे चलता था. आखिर कर अबके बार्षिकोत्सव पर यह सभा की गई......
यद्यपी फलोधी सभाके जनरल सैकरेटरी मिस्टर गुलाबचंदजी ढढा हैं परन्तु ऊनके मालपुरामें रहनेसे उन्होंने अजमेरनिवासी कांसटीया धनराजजीको इस प्रान्तिक सभाके लिये कोशिश करने और आमंत्रण पत्रोंके भेजनेकी सूचना देकर कारवाई कराई. रीसेपशन कमिटी अल्हदा नीमनेकी यों जुरूरत नहीं थी क्यों कि श्री फलोधी तीर्थोन्नत्ति सभा इस का काम करनेको मोजूद थी. उतारेके वास्ते मकानांत