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जैन कान्फरन्स हेरल्ड.
[ सप्टम्बर
धार्मिक ज्ञानके फैलानेकी जरूरत है क्योंकि जिस तरह शीयल स्त्रीका भूषण हैं उसही तरह ज्ञान मनुष्यका भूषण हैं, और जिसको ज्ञान दिया जावे उसका रक्षण करनाभी जुरूरी है क्योंकि पात्र वगैरे दान किसको दिया जावे, इन दिनोंमें भयंकर दुःकालोंके पडनेसे अपने स्वामि भाईयोंकी दशा बिगड गई है इस लिये उनकी रक्षाका करना बहुत जरूरी अमर है. जैन समाज में अवनतिका मुख्य कारण हानीकारक रीतिरिवाज हैं इनके प्रचलित रहनेसे सम्यक्त्व मलीन होकर मिथ्यात्वका अंधेर फैलाता है, मन्दिर या किसी धर्मादेके खातेका पैसा खाना नर्क में ले जानेवाला होता है, इस लिये इनका हिसाब साफ रखकर प्रगट करनेकी जरूरत है. और इसही तरह पर जिस बातपर आज तक संघर्ने चरचा नहीं चलाई है, ऊपर आपका ध्यान खेंचना मुनासिब है. वह यह है कि आज कल कई मन्दिरों में तो पूंजी जियादा देखी जाती है कि जिसके सबबसे सेवा पूजाका इन्तजाम ठीक होनेके उपरांत लाखों रुपये खजानेमें पड़े रहते हैं, और कई मन्दिरोंकी यह दशा है कि जहां केशर चंदन तो बडी बात है, पानीसे प्रक्षाल तकका इन्तजाम नही है. मन्दिर और प्रतिमा किस जगह भी क्यों नहो कसा भक्ति लायक है, इसलिये कुल हिन्दुस्थानकी समझदार मनुष्योंकी एक जनरल कमिटी मुकरर की जाकरशुभखातों और मन्दिरोंके हिसाबकी निगरानी उनकी रखवाई जाये और कुल फंडमेंसे सब मन्दिरोंकी सेवा पूजाका ठीक तोरपर इन्तजाम कराया जावे. बतौर एक बैंकके काररवाई की जावे. जीर्ण मन्दिर और पुस्तकोद्धार कराया जावे, क्योंकि श्री बीर परमात्माके पश्चात् अपना आधार उनकी प्रतिमा और उनकी बाणीपरही है. आज कल जो अपवित्र वस्तूओंका प्रचार हो गया है, उनको बंद करके पवित्र वस्तुओंका काममें लाया जावे और अपनी कुल व्यवस्था ठीक तौरपर चलानेके लिये सुकृत भंडारकी तरक्की दी जावे.
क्यूं कि सभाके काम काजके वास्ते हाथमें समय बहूतही कम था इस लिये प्रमुख साहबका भाषण स्वल्प होनेपर उसही जगह उसही वक्त सबजक्ट कमीटी नीमी जाकर विषय नकी कोये गये और पहीली बैठकमें नीचे लिखे हुवे विषय पास हुवे:
( नोटः- यहां पर सिर्फ विषयका नाम और उनपर दरख्वास्त करनेवालों, ताईद करनेवालों और अनुमोदन करनेवालों के नामही दिये जाते है उनके भाषणोंका सारांशभी जगह संकोचने के स्वयालसे नहीं दिया जाता है ) ठहराव पहिला:--
कोनफरन्सकी आवश्यक्ता •
दरखुवास्त करनारः - टोकरसी नेणसी - बम्बई. ताईद करनारः -- डाकटर नगीनदासजी - नागोर.
अनुमोदन करनारः -- हीरालालजी सुराणा - सोजत,
ठहराव दूसरा:
ब्यवहारीक तथा धार्मिक विद्याप्रचारकी आवश्यक्ता जैन समाज में व्यवहारीक तथा धार्मिक ज्ञानके फैलानेके लिये:--
( १ ) कन्या तथा स्त्रीशालाओंकी स्थापना,
( २ ) पाठशालाओं की स्थापना
( ३ ) स्कालरशिपोंका इजरा,