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और फारस होला :
[ जून हुषा द्रव्यही साधा जावेगा, अन्यथा सर्व सम्पत्ति वैभवः व ऐधर्य यहांही पड़ा रहेंगा "सबछाठ पडा रह जायेगा जबलाद चलेगा बनमारा." अपमे कुटुम्बके खोंमें लौकिक कार्योंमें, खर्च करनेका सहाहै, परन्तु सच्चा जैनी वहीहैं जो अपने धर्मके हेतु तन मन और धनको समर्पण करता है. ॥तन दे धनको राखिये, धन दे रखिये लाज। तन देधन दे लाज दे, एक धर्मके काज.॥ आशाहै कि सर्व भाई मेरी इस प्रार्थना को स्वीकार करेंगे और इस धर्मके कार्य में सहायता प्रदान करके इस जैन विद्याके भण्डारमें साहायी होंगे. .
___ कान्फ्रेन्स और विदेशी भाइयोंसे प्रार्थना है कि राजपूतानामे मध्यवर्ती पाठस्थान व छात्रशालाकी परमावश्यकता है,और जयपुर राजपूतानामें इसके योग्य सर्व प्रकार उत्कृष्ट स्थानहै. वर्तमान नियमावलि पाठशालाकी वर्तमान व्यवस्थापर बनाई गई है. यदि कान्फ्रेन्सकी व सर्व भाइयोंकी सहायता हुई, तो क्रमानुसार उच्च प्रकारकी नियमावलिभी भाइयोंकी सेवामें दीजावेगी. इसके उपरान्त हम यहभी निवेदन करना उचित. समजते हैं कि यदि इस कार्यमें हमारा उत्साह वृद्धिगत हुवा तो शीघ्रही स्त्री शिक्षाका प्रबन्ध करकेभी भाइयोंकी सेवा करेंगे. .
जैनियोंका दास
घींसीलाल गोलेछा मन्त्री, जैनागम पाठशाला-जयपुर.
जैनागम पाठशाला जयपुर. पाठक वृन्द ! जैनागम पाठशाला जयपुरसे आपलोगोंका परिचय होगया होगा. गत मासके हरैल्डमें प्रकाशित उसकी व्यवस्था और संशोधित नियमावलि पर आप लोगोंने ध्यान दिया होगा. आज आपके सामने इसही पाठशालाकी फरवरी, मार्च, एप्रिल मासकी कार्यबाही निवेदन की जाती है. जनवरी सन १९०६ के अखीर तककी व्यवस्था इस पाठशालाकी इस प्रकार है, कि इसके ध्रुवकोषमें ३६११॥)९ रु. हैं. जिनका व्याज उपार्जन होकर इसमें व्यय हो रहा है. मासिक चन्दा वा और किसी प्रकारकी जातीय आय इस पाठशालाकी नही है. राजकीय सहायताभी कितनेही दिनोंसे इसके यथायोग्य प्रबन्ध न होनेके कारण बन्द है, दो अध्यापक हैं, और एक क्लार्क है, ३५ छात्र हैं. ( जिनमें १५ जैन और २० अजैन ) पुस्तकालय नहीं है; किन्तु कतिपय पुस्तकोंका संग्रह ( जो कि समय समय पर होता रहाहै ) है. सामान पठनोपयोगी कुछ नहीं है, केवल फर्श बेंच आदि हैं और 'वास्तवमें देखा जाय तो जवकि जातीय आर्थिक और प्रबन्ध सम्बन्धी दोनूं सहायताओंका अभाव हो तो ऐसी अवस्थामें पाठशालाका अस्तित्वही बना रहना कुछ कम हर्षकी बात