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११२ . जैन कोन्फरन्स हरैल्ड..
अप्रील मुनिराज श्री हंसविजयजीका कच्छ देशमें प्रवास.
कच्छ अंजारमें जैन पाठशाळा तथा जैन सभाकी स्थापना. . अंजार शेहेरमें, बिलकुलं जैन शाळा नहि थी, लेकिन मुनि महाराज हंसविजयजी साहेब के सदुपदेशसें चेत वदि ७ यानें गुजराती फागण वदी ७ के रोज जैन शाळा तथा जैन सभा वाजांके नाद के साथ स्थापन हुई. .
___जैन शाळा खुल्ली मुकनेकी क्रिया फजरके नव बजेके सुमार चढते प्रहर शा० : अदेकरण मूळजी तरफसें घी बोलके करनेमें आई.
शाळास्थापनकी क्रिया ज्ञानद्रव्यकी वृद्धिपूर्वक शेठ जादवजी पीतांबर तरफसें करनेमें आई.
ज्ञानः पूजा घी बोलने पूर्वक, जादवजी जवते तरफसे हुई. . .
प्रथम पाठ घीकी बोली पूर्वक कपूरचंद मावजी दोसीके पौत्र धनजी भाईने गुरु मुखसे लिया.
- प्रभावना, शा० अदेकरण मूळजीने कीई और कीतनेक भाविक श्रावकोने रुपा नाणादिसें ज्ञान पूजन कीया.
जैन सभाका स्थापनभी घी बोलने पूर्वक कपूरचंद मावजी तरफंसें करनेमें आया सब क्रिया खलास हुवे बाद मुनि महाराजने जैनशाळा तथा सभाको अवल दरजेपर
लेजानेको असरकारक विवेचन किया सो सुणके सहर्ष लोको विसरजन हुवे, उसी रोज . दुपेरकु महाराजश्रीने मुद्रा शेहेर जानेके वास्ते गाम बहार विहार किया था.
भरवाडोके मुख्य गाम मींदीयाळे में मुनि महाराज श्री. हंसविजयजीका पधारना चेत वदी ८ याने गुजराती फागण वदी ८ के रोज कच्छ मींदीयाळामें मुनि महाराज . हंसविजयजी साहेब अंजार शेहेरेंसे विहार करके पधारे थे जीसमें शुमार ढाइसो घर भरवाडो के है, उस समय अंजारके मुख्य शेठीये तथा दुसरे भाविक गृहस्थ हाजर थे, उनको
मनिराज तरफसे सूचना होते भरवाडो को ईकठे करने में आये थे, उसमें अग्रगण्य भरवाड . वंका तथा भरवाड माला आदि भी थे, इतनाही नहि बल्के भरवाड बानुओने भी हाजरी
दीईथी, उन लोकोके हितार्थ मुनि महाराजने उपदेश देकर जीवदयाके लिये हृदयभेदक • विवेचन कियाथा सो सुणके भरवाड लोक बहुत हर्षित हुयेथे, उसका आबेहुब विचार
लोकोकी मुंख मुद्रामें मालूम होते ही, मुनि महाराजने काठीयाबाडमें २००० भरवाडरबारीका गंजावर मेळावडा जीवदयाका उठाया हुवा झुमा इस मथाळेवाला ता. ३ दिसेम्बर सन १९०५ का जैन पत्र पढके सुणाया था उसी मुवाफक घेटे आदि. मुकप्राणी बचोंके हितार्थ