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जैन कान्फरन्स हरैल्ड.
अप्रोल सम्वेगीको क्रियाभ्रष्ट नया फिरका बतलाकर अपने आपको प्राथमिक क्रियाके अनुयाई कायम करते हैं और कहते हैं कि जो शुद्ध परिपाटी श्री महावीर स्वामिके समयसे चली आतीथी उसहीको फिर कायम किया हैं. सम्वेगी और ढुंढियाओंके बादविबादमें न उतर कर इस वक्त हमको यह निश्चय करना है कि मूर्तिपूजाके संम्बधमें . इन दोनों फिरकोंमेंसे किस फिरकेका मत सच्चा हैं और इस परिक्षाके करनेमें हमारा मनशा किसीके दिल दुखानेका या किसीको बुरा कहनेका नहीं है. केवल इस बातको दिखलानेका है कि मूर्तिपूजन टुंढियाओंके बचनोंसे
भी सिद्ध होती है या नहीं. . . . . सम्वेगियोंका ढुंढियोंसे प्रथम सवाल यह होताहै कि अगर तुम सम्बेगियोंसे पहिलेके हो तो तुझारे धर्मोपदेष्टाओंकी पट्टावली बतलाओ. उस पट्टावलीमें गडबड मचती है और श्री वीर परमात्माके पश्चात जो पट्टावली मोजूद है उसमेंसे श्री देवरढी गणी क्षमाश्रमण सूरितक तो शुद्ध आम्नायक आचार्य मानते हैं उनके पश्चात जो चमत्कारी आचार्य हुवे हैं उनको क्रिया भ्रष्ट मानकर फिर इस धर्मका शुद्ध प्रचारक लूकाजी श्रावकको मानते हैं अगर लूंकाजी श्रावकनें वही शुद्ध धर्मका. रस्ता बतलाया जो श्री महावीर स्वामिके पीछे एक हजार वर्षपर्यंत चलता रहा तो इससे साबित होगा कि श्री महावीर स्वामिके एक हजार वर्ष पीछे तक कोई प्रतिमा या मन्दिर नहीं होना चाहीये क्यों कि ढुंढियोंके कोलके मुवाफिक उस वक्त तक मूर्ति उत्थापक आचार्य थे, परन्तु हिंदुस्थानके बडे बडे तीर्थों और अन्य स्थलोंमें जो प्रतिमायें मोजूद है और उन पर इस वक्त लेख मोजूद हैं उनसे साबित होताहै कि वह प्रतिमाये दो दो हजार वर्ष और उससे जियादा प्राचीन हैं. महूम मिस्टर वीरचंद राघवजी गांधी बी. ए. को अपनी अमेरीका की धर्म यात्राके समय एक सिद्धचक्रजीका यंत्र जमीन खोदते समय मिलाथा वह यंत्र इतना पुराना था कि उसमें नव पदका चिन्ह ही बाकी रह गया था. उस यंत्रको वह महाशय श्री पार्श्वनाथ स्वामिके समयसे भी पहिलेका बतलाते थे अगर देवरढी गणीजीके पहिले जिन प्रतिमाका होना साबित हो जावे तो ढुंढियोंको मूर्तिपूजक जरूर होना पडेगा.
__ढुंढियोंकी प्रथम कोन्फरन्सके समय अजमेर निवासी राय शेठ चांदमलजीनें अपने स्पीचमें कहा है:-" वर्तमान कालमें शासन चोबीसवें तीर्थकर भी महावीर स्वामीका बरत रहा है जिन्होंने भारतवर्षमें धर्मकी प्रवृत्ति की और बहुत जीवोंका कल्याण किया जिनके पाट श्री सुधास्वामी आचार्य हुवे उन्होंने बहुत उपकार किया उनके पाट श्री जम्बुस्वामी हुवे उन्होंने शास्त्र रचे, बाद उनके श्री प्रभव स्वामी हुवे, इस तरह सताईस पाटतक पाटानुपाट शुद्ध आचारके पालनेवाले आचार्य .हुवे, सताईसवें पाटपर श्री देवरढी गणी क्षमाश्रमणआचार्य हुवे जिन्होंने अंगादि शास्त्र पुस्तकारूढ किये. बाद इस हायमान कालसे और श्री भगवानकी राशी पर दो हजार बर्ष भस्म गृह आनेसे पूर्वोका ज्ञान विच्छेद हुवा ।