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. श्री जैनागम पाठशाळा जयपूर. बुद्धि और ज्ञान बलकी परीक्षा करने के बाद उसके चलाये हुवे धर्मके ग्रहण करने न करनेका बिचार करना चाहीये. ..
हमारी तो अखीरमेंभी यहही राय है कि इस मंजूर की हुई मोरवी कोन्फरन्सके प्रेसिडेंट की स्पीच के मुवाफिक हमारे ढुंढिया भाई हमारे साथ होकर इस बातके निर्णय करनेका कि श्रीमहावीर स्वामी के पश्चात १ हजार बर्ष के अंदर मूर्तिपूजा होतीथी यानहीं एक कमिशन निकालेंगे और उसके नतीजेके मुवाफिक अपना बरताव करेंगे तो दोनों फिरकों में संप होते हुवे कुछ भी देर नहीं लगेगी और समाज एक होकर दुनियाका भली प्रकार सुधारा करसकेंगे !
श्रीजैनागम पाठशाला-जयपूर. इस पाठशाला का वृतांत दूसरी जगह छपा है उससे इस पाठशाला का सब हाल मालूम होगा. अबतक इस पाठशालाने सतरा वर्षतक हयाती भोग कर हजारों रूपयोंके खर्च में उतर कर जैसा कि नेकनतीजा चाहीये नही बतलाया. इसका मुख्य कारण प्रबंध की कमी है और उसहीके साथ साथ श्वेताम्बर जैनियोंकी अपने पुत्रोंको इस पाठशालामें भेजकर शिक्षा दिलाने की अरुचि हैं. परन्तु हर्ष उत्पन्न होता है कि अब इसके प्रबंधको मिस्टर घींसीलालजी गोलेछाने अपने हाथमें लिया है और प्रबंध कारिणी कमीटिका नियत' करनाभी बिचारा गया हैं.
... इस पाठशालाका काम ठीक चलानेके वास्ते निम्न लिखित बातोंपर अवश्य ध्यान दिया जावे.
१. किसी एक साधू या यति या श्रावकके हाथमें इसका प्रबंध हरगिज न रखा जावे बल्कि इसका प्रबंध हमेशा एक प्रबंधकारिणी सभाद्वाराही कराया जावे.
२. इस प्रबंधकारिणी कमेटीमें आधेसे जियादा संख्या सुसिक्षित मनुष्योंकी होना उचित हैं कि वह अपने इल्मके जोर और तजुर्बेसे इस पाटशालाका प्रबंध ठीक करसके.. ..
३. पांच वर्षके और इस उपर जितने श्वेताम्बर जैनियोंके लडकेहों वह इस पाठशालामें तालीम पावे, इसके बाबत पंचायति ठहराव होकर उसकी पाबंदी की जावे.... ,
४. जो. लडका जिस गच्छ या आम्नायका हो उसको उसही के गच्छ या आम्नायके मुवाफिक धर्मशिक्षा दीजावे. .
. ५. व्याख्यान शक्ति बचपनसे. ही प्रबल करनेके हेतुसे इस पाठशालाके साथ साप्ताहिक सभाका होनाभी जरूरी हैं. .