________________
महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-काव्य-ग्रन्यों के संक्षिप्त कथासार
में डालकर रानी ने उससे यज्ञोपवीत, छुरी और मुद्रिका तीनों वस्तुएं जीत लीं।
रानी ने दासी को बुलाकर तीनों वस्तुएं उसे सौंपकर प्रादेश दिया कि मन्त्री के घर जाकर मन्त्री की पत्नी को ये तीनों वस्तुएं सौपकर भद्रमित्र की रत्नों की पोटली ले पा । दासी ने मन्त्री के घर जाकर मन्त्री की तीनों वस्तुएं उसकी पत्नी को सौंपकर भद्रमित्र की रत्नों की पोटली प्राप्त कर ली और लाकर रानी को सौंप दी।
चतुर्थ सर्ग रानी ने वे रत्न राजा को सौंप दिए। राजा ने भद्रामित्र की परीक्षा लेने के लिए उन रत्नों में और भी रत्न मिला दिए। किन्तु भद्रमित्र ने रत्नसमूह में से मरने सात रत्नों को छाँट कर उठा लिया। राजा ने भद्रमित्र का सत्याचरण देखकर उसे राजश्रेष्ठो बना दिया। साथ ही दुष्ट सत्यघोष को कठोर दण्ड देकर अपदस्थ कर दिया। उसके स्थान पर धम्मिल्ल नामक पुरुष को मन्त्री पद दे दिया। फलस्वरूप सत्यघोष ब्राह्मण ने प्रात्महत्या कर ली, वह मर कर सर्प हमा।
राजसेठ बन जाने के बाद, भद्रमित्र ने प्रासनाभिधान वन में रुके. वरपर्म नामक मुनिराज के दर्शन किए। उनके उपदेश से, उसके सन्तोष में वृद्धि होने लगी । फलस्वरूप वह अपनी सम्पत्ति का अतिशय दान करने लगा । अपनी लोभी मां के रोकने पर भी उसकी दानशीलता में कोई कमी नहीं हुई । उसके दानशील स्वभाव से रुट होकर उसकी माता ने प्राण त्याग दिए; वह मरकर व्याघ्री हुई। एक दिन इसी व्याघ्री ने भद्रमित्र को खा लिया। तत्पश्चात भद्रमित्र ने रानी रामदत्ता और राजा सिंहसेन के पुत्र (सिंहचन्द्र) के रूप में जन्म लिया। सिंहचन्द्र का एक छोटा भाई पूर्णचन्द्र था!
एक दिन जा सिहसेन अपने खजाने में रत्न इत्यादि को संभालकर जैसे ही वाहर आया, वैसे ही भण्डार के सर्प (सत्यघोष) ने राजा के प्राण हर लिए । राजा मर कर प्रशनिघोष नाम का हाथी हुमा; और सर्प (सत्यघोष) नगर के समीपस्थ वन में चमरमग हुना।।
राजा को मत्यु हो जाने पर शोक-विहला रानी ने, दान्तमति पौर हिरण्यवती नामक दो प्रायिकानों के कहने से प्राधिका धर्म स्वीकार कर लिया।
तदनन्तर सिंहचन्द्र राजा और पूर्णचन्द्र युवराज हुमा। राज्य में आए हुये पूर्णविधि मुनि को देखकर सिंहचन्द्र उनके समीप बाकर मुनि बन गया।
___ एक दिन सिंहचन्द्रमुनि मनोहर वन पहुंचे। वहां रामदत्ता प्रायिका भी : पहुँची; पौर सिंहचन्द्र से उसने निवेदन किया कि, - 'हे मुनिराज ! भापका छोटा भाई और मेरा पुत्र-जो इस समय भोगविलास में लिप्त है-कभी धर्माचरण करेगा या नहीं ?
... माता की बात सुनकर हिचन्द्र ने कहा कि-'जब उसको अपने पूर्वजन्म