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महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत काव्य ग्रन्थों के स्रोत
हए सभी लोग गदगंन करने लगे। प्रशिसे में मार राजा दनिया
:.: ::: :: :: : : :: राज्य ग्रहगा करने की जि । गाना: भावि के. प्रति अपनी निला पोट कर दी।
राजः प्रौर मदान परस्पर वाला कर ही रहे थे कि इनने में ही विमलवायन नामक विदा वा माये । मन में सवारियह त्या करके उनसे दीक्षा की यवना को विवहा ने मदर्शन को देगा दे दो।
सन का याममा वार मानकर रो ने माघार 7 या वर मरकर पनि में गहुई : राज के दाम 11: तीन को छोड दिया पोटावदी गई। वहां पप वेग के दर्शन का वृनान्न मनाकर देवदला नाम की वेय' के घर रहने लगी।
एक बार सदर्शन मुनि भ्रमण करते " पाटलिपत्र चे । गिद्धता दासी ने देवदना को सदगंन के दर्शन कगर। देवता ने कहा कि काला बागी और रानी अभया कामगार में प्राभिज थी मैं स गनि के तृदय में जाता का. सञ्चार कम्गी : ग' 7 देवता ने भोजन करने नाम बाग द्वारा सुदर्शन को ५' वाया : योगी मन देव दत्तः के घ ! जय ही उन्होने घर में प्रवेश किया, बादत ने दार बन्द कर दिया। तीन दिन कि उसने तरहतरह की नामटानी। दर्शन के ऊपर नामों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। नोबिल मेरो लदेव नः भापीन रीमि करने लगी। में गुदा -
पाया
गई।
वात गतिमा प्रक' गहाना कर यहांन प्रतिमायोग में स्थिर होगः ।
न मो दिन त - "य कटोर चेष्टायें की। गालन बीत जाने र मन के घानिया और उन्हें कैवल्य की प्राप्ति हो गई। गुण्डा वलो सुदर्शन छर इत्यादि से सुशोभित होने लगे । इसके बाद सदर्शन मुनि के पाम देवगण गाये ।
देवदत्ता, पण्डिता धाय एवं व्यन्तरी सुदर्शन वली के समीर में गई। वहाँ देवगणों के सम्मुख धर्मोपदेश देते हुए , सुदर्शन के.वाक्य सनकार इन तीनों ने श्रावक धर्म ग्रहण कर लिया। मुनि नयान्दि विरचिन 'सुवंसावरिउ' । सारांश
राजगृह के शासक राजा थेटिक के पूछे जाने पर गौतम गधर ने पंचनमस्कार मन्त्र को प्राप्त करने वाले भव्यों के विषय में कहा.. १. हरिपेणाचार्य विरनित वृहत्कथाकोट, मृभगगोपाल कथानकम, ६०वीं कथा ।