Book Title: Gyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Author(s): Kiran Tondon
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 509
________________ तृतीय परिशिष्ट महाकवि ज्ञानसागर की सूक्तियाँ अपनी बात को प्रभावपूर्ण बनाने के लिए वाग्विदग्ध व्यक्ति बीच-बीच में कुछ ऐसे वाक्य कह देता है, जिनका श्रोता पर विशेष प्रभाव पड़ता है, वह इनसे बहार को शिक्षा ग्रहण करता है मोर इन्हें याद रखता है। काव्य के 'कान्तासम्मितोपदेश' रूप प्रयोजन के लिए भी इन सूक्तियों का विशिष्ट महत्त्व है। प्रत कवि भी यथास्थान अपने काव्यों में इनका प्रयोग करता है । प्रस्मदालोच्य महाकवि बीज्ञानसावर ने भी अपने सभी संस्कृत काव्य ग्रन्थों में इनका प्रयोग स्थानस्थान पर किया है । इनके भाव-कौशल का परिचय देने वाली सूक्तियाँ निम्नलिखित हैं : : क्र०सं० सूक्ति १. प्रगदेनंब निरेति रोग: २. अनेक शक्त्यात्मकवस्तु तत्त्वम् । ३. प्रन्यस्य दोषे स्विदवाग्विसर्गः । ४. प्रक्रियाकारितयास्तु वस्तु । ५. प्रसुहताविव दीपशिखास्वरं शलभ प्रानिपतत्यप सम्वरम् ६. ग्रहो जगत्यां सुकृतं कखन्त ते रभीष्टसिद्धिः स्वयमेव जायते । ग्रन्थनाम वोरोदम वीरोदय बोरोदय वीरोदय जयोदय जयोदय जयोदय सुदर्शनोदय बीरोदय ७. ग्रहो दुरन्ता भवसम्भवाऽवनिः । ८. ग्रहो दुराराध्य इयान् परो जनः । C. ग्रहो मरीमति किलाकलत्रः । १०. महो मायाविनां माया मा यात् सुखतः स्फुटम् । जयोदय ११. अहो सज्जन समायोगो हि जनतामापदुदर्ता | जयोदय १२. प्राचार एवाभ्युदयप्रदेश: । वीरोदय १३. प्रात्मा यथा स्वस्थ तथा परस्य । वीरोदय १४. इन्द्रियाणि विजित्यंव जगज्जेत्त्वमाप्नुयात् । वीरोदय बोरोदम १५. इन्द्रियाणां तु यो दासः स दासो जगतां भवेत् । १६. उच्चासितोऽर्काय रजः समूहः पतेच्छिरस्येव... । वीरोदय लोकसंख्या ५।३१ १६८ १८३८ १.६८ २५/२५ २३०३६ २३।१६ ११४२ ६।३५ ७४ २३४४ ७२४ ७/६ ८।३७ ६।३७ १६/५

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