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ॐ ह्रीं श्री मुनिराज ज्ञानसागर प्रत्र भवतर सं बीषट् । ॐ ह्रीं श्री मुनिराज ज्ञानसागर प्रत्र तिष्ठ तिष्ठ तिष्ठ । ॐ ह्रीं श्री मुनिराज ज्ञानसागर मत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
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ॐ ह्रीं भी मुनिज्ञानसागर जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं निवेदयामि
स्वाहा ।
४.
महाकवि शामसागर के काव्य - एक अध्ययन
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ॐ ह्रीं श्री मुनिज्ञानसागर भवतापविनाशाय चन्दनं निवेदयामि स्वाहा ।
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ॐ ह्रीं श्री मुनिज्ञानसागर प्रक्षयपदप्राप्तये प्रक्षतं निवेदयामि स्वाहा । X
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ॐ ह्रीं भी मुनिज्ञानसागर कामवाणविध्वंसनाय पुष्पं निवेदयामि स्वाहा ।
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ॐ ह्रीं श्री मुनिज्ञानसागरक्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निवेदयामि स्वाहा ।
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ॐ ह्रीं श्री मुनिज्ञानसागर मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निवेदयामि स्वाहा ।
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+ ॐ ह्रीं श्री मुनिज्ञानसागर भ्रष्टकर्मदहनाय धूपं निवेदयामि स्वाहा ।
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+ ॐ ह्रीं श्री मुनिज्ञानसागर मोक्षफलप्राप्तये फलं निवेदयामि स्वाहा ।
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+ ॐ ह्रीं श्री मुनिज्ञानसागर प्रनष्यंपदप्राप्तये प्रथं निवेदयामि स्वाहा ।
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- श्रीलाल जैन, वेद्य, हिस्सार, 'मुनिपूजन', पू० सं० ३-५
जिन्हों का दर्श करने को सभी प्राणो तरसते हैं । हर्षते नाम सुन-सुन कर वही ये ज्ञानसागर हैं ॥ जगाते पामरों को भी बताते सत्य शिव मारग । मिटाते फूट प्रापस की, बही ये ज्ञानसागर हैं । नहीं है प्रेम भक्तों से, नहीं है द्वेष द्रोही से । ष्टि है एक सी सब पर, वही ये ज्ञानसागर हैं । सोम्य मुस्कान सूरत है, सरब मृदु बन बोले हैं। कपट प्रभिमान नहीं जिनके, वही ये ज्ञानसागर हैं ।। नहीं घटवी भयानक है, नहीं मरघट डरावन हैं । नहीं अहि व्याघ्र की शङ्का, वही यह शानसागर हैं ॥