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महाकवि नामसागर के काम्य-एक अध्ययन
(ब) 'श्रीसमुद्रदत्तचरित्र' का नायक भदचित्र एवं उसके माता-पिता तोगी ही वाग्वंदम्य से युक्त हैं । भद्रमित्र को रत्नद्वीप यात्रा के समय हमें तीनों वाग्वदग्ध्य का ज्ञान हो जाता है।'
इसके अतिरिक्त 'दयोदयधम्म' के पात्र सोमदत्त, राजा का दूत' पोर राणा का द्वारपाल' भी वाग्वदग्ध्य का परिचय देते हैं ।
उपर्युक्त उदाहरणों के अतिरिक्त भी कवि के काव्यों में वाग्वदग्ध्य के अनेक उदाहरण मिलते हैं, किन्तु वे अधिक माकर्षक एवं उदरणीय नहीं हैं। संवाद
कवि जब काम्य-प्रणयन करता है तो वह कुछ बातें अपने पाप कहता है पोर कुछ बातें काव्य के पात्रों के माध्यम से कहलाता है। काम्य में पाए पात्रों के पारस्परिक पालाप-संताप को ही संबार कहा जाता है। काव्य की नाटक नाम विषा में तो पात्रों के इन कथोपकपनों का ही महत्व होता है, क्योंकि पात्र अपने इन संवादों के माध्यम से ही दर्शक को अपना परिचय देता है भोर कथा को गति देता है । काम्य की गणात्मक विषा में भी कहीं-कहीं कवि पात्र को सामने प्रस्तुत करने के लिए,-मानों स्वयं उसके बारे में कहते-कहते थक गया हो,-उससे संवाद करवाता है। किन्तु पथकाव्य वर्णनात्मक होते हैं, प्रतः इनमें संवादात्मकता का गुण कम ही देखने को मिलता है ।
महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-काव्यों में संवाद
श्रीज्ञानसागर के काव्यों में अनेक संवाद हैं। उदाहरणार्थ-दूत-जयकुमारसंवाद, प्रककोति-प्रनवरामति-संवाद, सिद्धार्थ-प्रियकारिणी-संवाद, प्रियकारिणी-देवी. संवाद, वर्षमान-सिद्धार्य-संवाद, सेठ वृषभदास-जिनमति-संवाद, सुदर्शन-कपिलासंवाद, सुदर्शन-मनोरमा-संवाद, सुदर्शन देवदता-संवाद, भद्रमित्र-माता-पिता का संवाद, श्रीभूति भवमित्र-संवार, मगसेन-घण्टा-संवाद, गुणपाल-गोविन्द-संवाद, गुणपाल-गुणश्री-संवाद, दूत-सोमदत्त-संवाद, मंत्री-वृषभदत्त-संवाद, राजा-विषासंवाद प्रादि-प्रादि । यहाँ प्रापके समक्ष कुछ महत्त्वपूर्ण संवादों के उदाहरण प्रस्तुत किये जा रहे हैं
(क) वन-विहार के समय कपिला मोर रानी प्रभयमती का वार्तालाप देखिये- .
१. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ३१३-१४ २. योग्यचम्पू, ७॥३-४, ६,६ ३. वही, ७२, ५ ४. वही, ८