Book Title: Gyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Author(s): Kiran Tondon
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 501
________________ महाकवि मानसागर की संस्कृत भाषा में लिहित दार्शनिक कृतियाँ ४१ श्रीज्ञानसागर ने उपर्युक्त विषयवस्तु संस्कृत के १०० श्लोकों में लिखकर उसकी सरल एवं विस्तृत व्याख्या भी की है। उपलब्ध पुस्तकों में ९१ ही श्लोक एवं उनकी व्याख्या मिलती है। यह पुस्तक जन-दर्शन के जिज्ञासुषों के लिए अत्यन्त उपयोगी है। अनुवाद कृतिप्रवचनसार प्रस्तुत ग्रन्थ मौलिक रूप में श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्य जी ने ही लिखा है। इसकी भाषा प्राकृत है । इनमें क्रमशः तीन अधिकार है-ज्ञानप्ररूपक अधिकार, श्रेयाधिकार और चरित्राधिकार । प्रथम अधिकार में ९४, द्वितीय में १०८ पोर तृतीय में ६५ गाथाएं हैं। श्रीज्ञानसागर जी ने प्राकृत भाषा में रचित उक्त गाथानों का संस्कृत भाषा में अनुष्टुप् श्लोकों में पूर्णरूपेण छायानुवाद किया है। साथ ही उनका हिन्दी पवानुवाद एवं सारांश भी लिख दिया है। अतः इस प्रन्य को कविवर की मात्र हिन्दो रचना न कहकर संसत एवं हिन्दी की मिश्रित रचना मानना चाहिए। . जैन-दर्शन के जानने का इच्छुक इस अन्य के प्रध्ययन से द्रव्य, गुण, पर्याय, शुभोपयोग, पशुभोपयोग, शुद्धोपयोग, मोह, स्यादवाद, द्रव्य-भेद, जीव एवं पुद्गल का स्वरूप, भात्मतत्त्व, ध्यान एवं उसके प्रकार, उत्तम पाचरण, मुनियों के भेद, पाप-भेद, स्त्रीमुक्ति इत्यादि विषयों को प्रासानी से समझ सकता है।' १. यह ग्रन्थ श्री दिगम्बर जैन समाज, हिसार से सन १९५६ ई. में प्रकाशित हमा है। २. यह ग्रन्थ श्री महावीर साझाका, पाटनी, किशनगढ़ रेनवान ने सन् १९७२ ई. में प्रकाशित करवाया है।

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