Book Title: Gyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Author(s): Kiran Tondon
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 504
________________ ४४४ धन्यकुमार का चरित ( भाग्योदय ) इस काव्य में धन्यकुमार का जीवन-वृत्तान्त बड़े रोचक ढङ्ग से प्रस्तुत किया गया है | धन्यकुमार के विस्तृत वर्तमान जन्म-वर्णन के साथ ही उसके दो पूर्वजन्मों का भी वर्णन इस काव्य में किया गया है । इस काव्य का नायक ( धन्यकुमार) प्रद्भुत व्यक्तित्व का स्वामी है। उसके गुणों को देखकर जहाँ उसके प्रग्रज प्रन्त-प्रन्त तक ईर्ष्या के प्रग्नि में सुलगते रहते हैं, वहीं कुसुमश्री, सोमश्री, सुभद्रा, मञ्जरी, गीतकला, सरस्वती, लक्ष्मीवती प्रोर गुणवती — ये माठ राजकुमारियाँ एवं श्रेष्ठिपुत्रियाँ उसके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उसकी पत्नियाँ बन जाती हैं । काव्य में शृङ्गार, वीर, प्रद्भुत करुण इत्यादि रसों की सुन्दर प्रभिव्यञ्जना हुई है । किन्तु ये सभी रस इस काव्य के प्रधान रस शान्त रस के प्रङ्ग ही हैं । धन्यकुमार के पिता घनसार के दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् काव्य में शान्तरस प्रबाध रूप से अभिव्यञ्जित हुआ है; भोर उपर्युक्त सभी रसों की परिणति भी उसी में हुई है। महाकवि ज्ञानसागर के काव्य- एक अध्ययन कवि ने काव्य का प्रणयन-कथारम्भ, दुबारा भाग्यपरीक्षा, नगरसेठपदप्राप्ति, गृहत्याग, गृह कलह, विवाह-प्रक्रम, कटुम्ब समागम, धन्य कौशाम्बी में धन्ना का समन्वेषण, न्यायप्रियता, कौशाम्बी से प्रस्थान, प्रायश्चित्त और धन्यकुमार का वैराग्य - इन तेरह शीर्षकों में किया है। काव्य में प्रयुक्त समस्त पद्यों की संख्या ८५८ है । ये पद्य कुण्डलिया, हरगीतिका, डिल्ल, गीतिका, दोहा, कुसुमलता, चप्पय, गजल, रेखता प्रादि हिन्दी के छन्दों में निबद्ध हैं । कहीं-कहीं पर कव्वाली नामक गायन शैली भी प्रयुक्त की गई है। काव्य में दृष्टान्त', उत्प्रेक्षा, प्रर्थान्तरन्यास ३, रूपक; ४ उपमा, परिसंख्या, और विरोधाभास ® प्रलङ्कारों की भी छटा यत्र-तत्र दिखाई दे जाती है । काव्य की भाषा शैली सरल है। कवि ने भावश्यकतानुसार मुहावरे एवं उर्दू के शब्दों का भी प्रयोग किया है । १. २. वही, २११, १६, ३१२८ ३. वही, ३।५२ धन्यकुमार का चरित, २११, ८११७ ४. धन्यकुमार का चरित, ४२, ३४ ५. वही, ५।११, ६।७५, ७७ ६. वही, ८।२८ - २६ ७. वही, १२।१-२

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