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महाकवि ज्ञानसागर को हिन्दी रचनाएँ
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इस काव्य में नर्मदा नदी,' गङ्गा नदोर सोरठ देश भोर वाराणसी नगरी के वर्णन विशेष उल्लेखनीय हैं।
एक स्थल पर जैन धर्म एवं दर्शन के सिद्धान्त भी प्रस्तुत किये गये हैं । एक स्थल पर लक्ष्मी के दोषों का भी प्राकर्षक वर्णन मिलता है।'
कहना न होगा कि इस काव्य के माध्यम से कवि ने मानव को मास्तिकता कर्मठता, सत्यवादिता, सहिष्णुता, त्यागप्रियता प्रौर परोपकार-परायणता की शिक्षा देने के प्रयास में अद्भुत सफलता प्राप्त की है। ऋषभावतार के समान ही यह काग्य भी महाकाव्य की संज्ञा पाने के योग्य है।
इस काम्य की समाप्ति सन् १९५३ ६० (वि० सं० २०१३) में हुई थी। पवित्र मानव-जीवन
प्रस्तुत पुस्तक की रचना सरल हिन्दी भाषा में पद्यों में की गई है। पूरी पुस्तक में १९३ पद्य हैं। इस पुस्तक के द्वारा बोज्ञातसागर ने व्यक्तियों की समाज-सुधार, परोपकार, प्रावश्यकतापूत्ति, कृषि एवं पशुपालन, भोजन के नियम, स्त्री.का कर्तव्य एवं उसका समाज में स्थान, बालकों के प्रति अभिभावकों के कर्तव्य, प्राधुनिक दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति, उपवास, गहस्थ और त्यागी में अन्तर इत्यादि जानने योग्य विषयों का रोवक प्रतिपादन किया है। सरल जंन विवाह विधि
हिन्दी भाषा में रचित गहस्थियों के लिये उपयोगी इस पुस्तक में जैनविवाह-विधि वरिणत है । इसमें विवाह के लिये शुभमुहूर्त, तीर्थङ्करों एवं देवगणों का पूजन तथा पति पत्नी के परस्पर कर्तव्य क्रमशः पद्यों के माध्यम से प्रस्तुत किये गये हैं। इसमें दोहा, मोरठा, त्रोटक, बसन्ततिलका, स्रग्धरा, मन्दाक्रान्ता, पार्या मादि छन्दों का प्रयोग मिलता है । मन्त्रोच्चारण संस्कृत-भाषा में है, परन्तु
१. वही, ४१३८.४० २. वही, ५॥१८-२० ३. वही, ११४ ४. वही, ५०१७-१६ ५. बही, १२४६-५२ ६. वही, २०५७-५८ ७. (क) वही, १३१७५-७६ (ख) यह ग्रन्थ श्री जैनसमाज, हाँसी से सन् १९५७ ई० में प्रकाशित
हुमा है। ८. यह ग्रन्थ दिगम्बर जैन महिला समाज, पंजाब से सन् १९५६ ई. में
प्रकाशित हुपा है।