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महाकवि ज्ञानसागर के काव्य - एक प्रध्ययन
सामान्य नागरिकों की सुविधा के लिये मन्त्रों का अनुवाद हिन्दी में कर दिया गया है । '
कर्तव्यपथ प्रदर्शन -
इस पुस्तक में ८२ शीर्षकों द्वारा पाठकों को सामान्य व्यवहार को शिक्षा दी गई है। शिक्षा को रोचक बनाने के लिये प्रनेक कथाओंों को भी प्रयुक्त किया गया है । इस पुस्तक में उल्लिखित नियमों को यदि व्यक्ति प्रात्मसात् कर ले तो वह कलह से दूर हो सकता है, और सच्चा मानव बन सकता है।
सचितविवेचन
प्रस्तुत पुस्तक में सचित (जीवन्मुक्त) घोर प्रचित्त (जीवरहित) पदार्थों का अन्तर समझाया गया है, जिससे मनुष्य को किन-किन बाद्य एवं पेय पदार्थों का सेवन करना चाहिये ? प्रोर किन-किन का परित्याग करना चाहिये - यह बात पाठक की समझ में मासानी से प्रा जाती है। बीच-बीच में कुन्दकुन्दाचार्य के तत्वार्थसूत्र' प्राशावर के जैनधर्मामृत' इत्यादि ग्रन्थों के उद्धरण भी विषय की पुष्टि के लिये ग्रहण किये गये हैं । ग्रन्थ की भाषा-शैली सरल एवं सुबोध है । सामान्य ज्ञान रखने वाला व्यक्ति भी इस पुस्तक को पढ़कर लाभ प्राप्त कर सकता है ।
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स्वामी 'कुन्दकुन्द और सनातन जैन धर्म
इस पुस्तक में श्रीज्ञानसागर ने स्वामी कुन्दकुन्द का जनधर्माचायों में मूर्धन्य स्थान निर्धारित किया हैं, साथ ही उनका जीवन परिचय और देशकाल भी बताया है। स्त्री मुक्ति, केवल- ज्ञान आदि का भी इस पुस्तक में विवेचन किया गया है ।
टीका कृतियाँ
तत्वार्थ सूत्र टीका
यह जैन धार्मिकों का सर्वमान्य शास्त्र ग्रन्थ है । कविवर श्रीज्ञानसागर ने इसकी टीका दश अध्यायों में लिखी है। इस ग्रन्थ के प्रथम अध्याय में सम्यक्त्व, जीब, प्रजीव, द्रव्य, ज्ञान, निर्मल मात्मा आदि का स्वरूप क्रमश: वरिणत हैं । दूसरे अध्याय में कर्मों के उपशमन, उपयोग स्वरूप, मन का स्वरूप एवं भेद, स्थावर
१. यह ग्रन्थ दिगम्बरजंन समाज, हिसार से सन् १९४७ ई० में प्रकाशित हुधा है |
यह ग्रन्थ टिगम्बर जैन पञ्चायत, किशनगढ़, रेनवाल से सन् १९५९ ई० में प्रकाशित हुआ है ।
३. यह ग्रन्थ श्री जैन समाज, हांसी से सन् १९४६ ई० में प्रकाशित हुधा है । ४. इस ग्रन्थ को सजानसिंह विमलप्रसाद जैन, मुजफ्फर नगर ने सन् १९४२ ई० में प्रकाशित कराया है ।