Book Title: Gyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Author(s): Kiran Tondon
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 500
________________ प्रथम परिशिष्ट महाकवि ज्ञानसागर की संस्कृत-भाषा में लिखित __ दार्शनिक कृतियाँ श्रीज्ञानसागर ने संस्कृत-भाषा में काम्यग्रन्थों के अतिरिक्त दो दार्शनिक कृतियां भी लिखी हैं। इनमें से एक तो कवि की मौलिक कृति है मोर दूसरी अनुवादकति । वैसे तो इन दोनों कतियों का परिचय हमें उनके संस्कृत काम्प-ग्रन्यों के साथ ही देना चाहिए पा, किन्तु अपने शोधप्रबन्ध के शीर्षक के अनुसार उनके संस्कृत काव्यग्रन्यों की समीक्षा ही हमारा वयं विषय है । अतः उनको इन दार्शनिक कृतियों की समीक्षा वहां न करके यहाँ परिशिष्ट में ही संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है :मौलिक कृति सम्यक्त्वसारशतक श्रीज्ञानसागर ने इस ग्रन्थ में जैनधर्मानुसार बताया है कि प्रात्मा को शुद्धता एवं सर्वज्ञता की अवस्था को सम्यक्त्व कहते हैं। सम्यक्त्व के तीन प्रकार हैं :-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, साम्यबारित्र । प्रात्मा की इसके विपरीत अवस्था का नाम मिथ्यात्व है । वस्तु के दो रूप है-चेतन पोर प्रचेतन । चेतन प्रात्मा है। प्रचेतन वस्तु धर्म, प्राकाश, काम और पुद्गल के भेद से पांच प्रकार की है। इनमें से प्रथम चार प्रमत्तं हैं और पुद्गल मूर्त है । जीव और पुद्गल की गति में सहायक को धर्म कहते हैं जो इन दोनों की स्थिति में सहायक नहीं है उसे अधर्म कहते हैं। सब वस्तुओं का माश्रय स्थान प्राकाश है । वस्तुत्रों में परिवर्तन करने की शक्ति का नाम काल है। अपने कर्तव्य के विषय में सोचना कर्मचेतना या लब्धि कहलाता है । यह लन्धि देशना, विशुद्धि, प्रयोगिका भोर काल-चार प्रकार की है। इन नषियों से व्यक्ति सुविधा पूर्वक सम्यक्त्व लाभ कर सकता है। इसके प्रतिरिक्त एक सन्धि पोर है-करणसन्धि। इनके तीन रूप हैं :-प्रधः करण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण। जब उपर्युक्त लधियों की सहायता से व्यक्ति कर्मों का उपशमन कर लेता है, तब उसे सम्यक्त्रय की प्राप्ति होती है। ऐसा पुरुष, देव, विद्याधर का जन्म एवं मोक्ष की प्राप्ति करता है। सम्यग्दष्टि पुरुष के गुण हैं :-वात्सल्य, धर्म-प्रभावना, त्याग तथा सन्तोष । इनों गणों की सुपरी हई दवा सम्यक्त्व है, पौर बिगड़ी हुई दशा मिथ्यात्व ।

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