Book Title: Gyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Author(s): Kiran Tondon
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 497
________________ मानसागर का संस्कृत-कवियों में स्थान इस काव्य के पढ़ने से शासक-वर्ग यह जान सकता है कि बिना बिचारे कोई कार्य नहीं करना चाहिए । अपराधों को समाप्त करने के लिए सर्वप्रथम उनको दूर करने के उपाय अपने ही पारिवारिक जनों पर करने चाहिएँ और वास्तविक अपराधी को हो दण्ड मिलना चाहिए। निरपराध व्यक्ति दण्डित किया जाय, यह बात राजा के हित में नहीं है । ___स्पष्ट है कि काव्य, काव्यशास्त्रियों, सामाजिकों, शासकों, दार्शनिकों और धार्मिकों को शिक्षा देने में एवं उनको सन्तुष्ट करने में समर्थ है । मतः यह काम्य भी संस्कृत-साहित्य में उच्च स्थान पाने का अधिकारी है । (१) बीसमुद्रदत्तचरित्र इस काग्य में 'सुदर्शनोदय' के समान ही ६ सगं हैं। इसमें भवमित्र नामक काव्य-नायक के जन्म-जन्मान्तरों का वर्णन है। इसके माध्यम से कवि ने अस्तेय नामक महाव्रत की शिक्षा दा है और चोरी एवं प्रसत्य-भाषण के दुष्प्रभाव . से बचने के लिए पाठक को सावधान किया है। इस काव्य में पुनर्जन्मवाद और कर्मफलवाद का वर्णन इस प्रकार किया गया है कि पाठक पूर्वजन्म और वर्तमान जन्म का तालमेल बिठाते समय वास्तविक कथा भूल जाता है। वैसे भी इस काव्य को रचने का उद्देश्य किसी रोचक घटना विशेष को प्रस्तुत करना नहीं है। कथा तो काव्य के उद्देश्य (अस्तेय की शिक्षा) को सहायिका के रूप में प्राई है । सम्पूर्ण काव्य पढने पर एक ही निष्कर्ष निकलता है-'सत्यमेव जयते नानतम् ।' इसके अतिरिक्त इस काव्य की रचना का दूसरा उद्देश्य है-काव्य के माध्यम से जैन-दर्शन के सिद्धान्तों को प्रस्तुत करना।। ___ दर्शन-प्रधान एवं धर्मोपदेशप्रधान होते हुए भी इस काव्य के कुछ स्थल प्रष्टव्य हैं । यथा-धनार्जन हेतु विदेश जाते हुए भदमित्र का अपने माता-पिता से संवाद, रानी द्वारा द्यूत-क्रीड़ा से राज्य के पुरोहित की कलई खुलना, राजा की मृत्यु के बाद रामदत्ता का मार्यिका बन जाना मादि । इन सभी घटनामों में कवि के भावपक्ष का सामर्थ्य स्पष्ट प्रतीत होता है। श्रीमानसागर के पूर्व ऐसे काम्य नहीं के बराबर रचे गये, जिनमें महाकाव्य पौर चरितकाव्य को विशेषताएँ साथ-साथ दष्टिगोचर होती हैं। श्रीसमुद्रदत्तचरित्र ऐसा ही काव्य है। परिसंख्या, विरोधाभास मादि से अलंकृत, सरल माषा से सुसज्जित कुमार शेनी में प्रस्तुत, उपजाति, द्रुतविलम्बित प्रादि छन्दोबद्ध इस काव्य का सापक्ष एवं जन्मवृत्तान्तों का प्राधिक्य शाम्तरस की पर्वणा में बाधक नहीं अतः यह काव्य पाबालवड, सभी के लिए हितोपदेशात्मक है। दार्शनिकों

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