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महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन
(ग) सुदर्शनोदय
____यह नी सों का एक छोटा सा महाकाव्य है। इस काव्य के द्वारा कषि ने पञ्चनमस्कार मन्त्र के महत्त्व से पाठक को अवगत कराना चाहा है। साथ ही पातिव्रत्य, एकपत्नीव्रत, सदाचार, गम्यक्चरित्र इत्यादि गुणों की भी शिक्षा दी है।
'जयोदय' और 'वीरोदय' की अपेक्षा इस काव्य में पाठक अधिक अच्छी रसचर्वणा कर सकता है। इसमें शङ्गार रसाभास पर शान्तरस की अद्भुत विजय दिखाई गई है।
कपिला ब्राह्मणी को कामुकता, प्रभयमती का घात-प्रतिघात, देवदत्ता बेश्या की कुचेष्ट्राएं मोर काव्य के नायक सुदर्शन को इन सब पर विजय काव्य के मार्मिक स्थल हैं । ये सभी स्थल पाठक को सच्चरित्र की शिक्षा देते हैं ।
इस काव्य की सबसे बड़ी विशेषता है- इसके गीत । साहित्य, सङ्गीत एवं दर्शन का प्रदर्भूत सम्मिश्रण काव्य को उत्कृष्ट बनाने में सहायक हैं। मन्तदन्द, प्रसन्नता, भक्ति, प्रेम इत्यादि मनोभावों को प्रकट करने में सहायक विभिन्न रागरागिनियों को शंलियों में बद्ध इन गीतों का प्रयोग कवि का अद्भुत प्रयास है। कवि के इस काव्य को यह विशेषता हम कालिदास के काव्यों में भी नहीं पाते, फिर अन्य कवियों के विषय में क्या कहा जाए ? यद्यपि जयदेव के 'गीत-गोबिन्द' में गीत भी संस्कृत-साहित्य में ख्याति प्राप्त कर चुके हैं, किन्तु ये गीत संवादों या घटनामों के बीच-बीच में न होकर क्रमशः हैं। जबकि हमारे प्रालोच्य कवि ने विशिष्ट भावों को प्रकट करने के लिए घटनामों और संवादों के बीच में इन गीतों को प्रयुक्त किया है।
सेठ-सुदर्शन के जीवन-वृत्तान्त द्वारा इस काव्य में कवि ने सहिष्णुता की शिक्षा दी है । तीन-तीन बार विपत्ति मा जाने पर प्रोर प्राणों की बाजी लग जाने पर भी सेठ सुदर्शन न तो कर्तव्य-पथ से डिगे और न उन्होने अपने प्रति दुव्यवहार करने वालों के प्रति कटवचन कहे। यह सहिष्णुता तो सुदर्शन जैसे महापुरुषों का हो पलङ करण हो सकती है। सामान्य मनुष्य तो किञ्चित् विपत्ति से ही घबरा जाते हैं, घोर उपसों को सहने की क्षमता उनमें कहाँ ? ।
कवि ने स्थान-स्थान पर मुनियों के प्राचार, प्राहार-व्यवहार मादि की शिक्षा भवसरानुकूल दी है। कथा के माध्यम से प्रस्तुत किए जाने के कारण यह शिक्षा कोरा उपदेश न रहकर पाठक के हृदय पर छा जाने को भी क्षमता रखती है।
काव्य के उपजाति, अनुष्टप, शार्दूलविक्रीडित आदि छन्द, उपमा, विरोधाभास प्रादि अलङ कार, अन्त्यानुप्रास की तुकबन्दी सुन्दर पदों वाली भाषा और सुकुमार शैली से समुद्ध कलापक्ष का भावपक्ष के साथ अद्भुत समन्वय इस काव्य की एक अन्यतम विशेषता है।