Book Title: Gyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Author(s): Kiran Tondon
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 460
________________ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य --एक अध्ययन अधिक महत्ता प्रदान की है।' यदि पति द्वारा ग्रहण किया गया मार्ग समुचित हो, तो स्त्रियों को चाहिए कि स्वयं भी उसी प्रोर बढने का प्रयत्न करें। . महाकवि की मान्यता है कि पुत्र-पुत्री को अपने माता-पिता की प्राज्ञा माननी ही चाहिए, किन्तु माता-पिता को भी अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए ऐसा कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए जो उनको सन्तान के हित में बाधक हो, जैसा कि गुणाल एवं गुणमतो ने किया। कवि को दटि में सन्तान को माता-पिता की अनुचित प्राज्ञा का उल्लङ्घन कर देना चाहिए । श्रीज्ञानसागर को नारी का वेश्या रूप अच्छा नहीं लगता है । यही कारण है कि उनके काव्य की एक वेश्या तो सोमदत्त को उद्यान में सोता हुमा देखकर उसके प्रति वात्सल्य से विभोर हो जाती है। प्रोर दूसरी वेश्या सुदर्शन के तपस्वी एवं एढ़-व्यक्तित्व के पागे झुक जाती है। इससे स्पष्ट है कि कवि ने नारी के स्वाभा. विक गुणों को वेश्यामों के अस्वाभाविक दुर्गुणों पर विजय कराई है, जो भाज के वैश्यावृत्त्युन्मूलन का ही प्रतीक है। उपर्युक्त विवेचन से स्पy है कि श्री ज्ञानसागर ऐसा समाज चाहते हैं, जिसमें सब प्रकार से स्वस्थ, निंध्यपरायण, सदाचारी एवं धर्मात्मा व्यक्ति हों। कषि को राजनैतिक विचारधारा -- . किसी राज्य के संचालन की रीति को ही राजनीति कहते हैं। राजनीति प्रत्येक शासक की अलग-अलग होती है । किसो राजा की नीति सफल होती है और किसी की प्रसफल । सफल राजनीति वह है जिसके अनुसार राजा प्रजा पर नियन्त्रण भी कर सके और उसे वात्सल्य भी दे सके। इस प्रकार की नीति में विद्रोह की सम्भावना भी नहीं हो सकती। श्री ज्ञानसागर के काव्यों के परिशोलन से ज्ञात होता है कि कवि को इस बात का पूरा-पूरा ज्ञान है कि राजा के प्रजा के प्रति और प्रजा के राजा के प्रति क्या-क्या कर्तव्य होने चाहिएं ? एक मुनि द्वारा राजकुमार जयकुमार को दिए गए उपदेश में कवि की इस राजनैतिक विचारधारा का ज्ञान हो जाता है उसके अनुसार राजा को अपने सेवकों से उचित व्यवहार करना चाहिए। दान, सम्मान इत्यादि से शत्रुनों को भी प्रपने वश में कर लेना चाहिए। जो राजा प्रजा के हित का ध्यान रखता है, योग्य व्यक्ति को ही कार्य सौंपता है और सोच-विचार कर हो १. (क) जयोदय, २८१६६ . (स) सुदर्शनोदय, ८।२७, ३३, ३४ २. दयोदयचम्पू, षष्ठ सम्म । १. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ४७, ८ ५. दयोदयचम्पू, लम्ब ४, श्लोक ११ पोर १२ के बाद के मदमाग । ५. खुदर्शनोदय, ६ लोक ३१ तथा इसके पूर्व का गीत। ६. जयोदय, २१७०-७२

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