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महाकवि ज्ञानसागर का जीवन-दर्शन
कवि की सांस्कृतिक विचारधारा
महाकवि श्री ज्ञानसागर की प्राचीन भारतीय संस्कृति के प्रति गहन प्रास्था है । वह वेद-वेदाङ्गों को शिक्षा पर विश्वास करते हैं।' परन्तु उन्होंने कर्मकाण्ड में की जाने वाली हिंसा की कठोर निन्दा की है और 'अजेर्यष्टव्यम्' इत्यादि वेदवाक्यों का सुसंस्कृत एवं हिसापरक भावार्थ समझाने का प्रयत्न किया है । उनको दृष्टि में 'प्रजेर्यष्टव्यम्' इस वेदवाक्य का तात्पर्य - 'बकरों से यज्ञ-क्रिया का सम्पादन करना चाहिये - ऐसा नहीं है, अपितु इस वाक्य का तात्पर्य है— न उनने योग्य पुराने धान्य से यज्ञ करना चाहिए । २
कवि का पुनर्जन्म एवं कर्मफल में सुदृढ़ विश्वास है । उनके अनुसार अपने पूर्वजन्म में जो जैसा करता है, दूसरे जन्म में उसको उसी के अनुसार फल भोगने पड़ते हैं। सोमदन ने पूर्वजन्म में एक मछली को जीवन दान दिया था, प्रतः वर्तमान जन्म में वह बारंबार मृत्यु के मुख से बचता रहा। श्रीभूत पुरोहित ने पुत्र का धन हड़पने का प्रयत्न किया था, इसलिए वह बार-बार कुयोनियों में जन्म ले लेकर भटकता रहा । ४
श्री ज्ञानमागर की जिनेन्द्रदेव के प्रति दृढ़-भक्ति है । उनके संस्कृत भाषा में लिखे गए प्रत्येक ग्रन्थ का शुभारम्भ श्री जिनदेव की ही स्थिति से हुम्रा है ।" उनके काव्यों के नायक श्री भगवान् जिनेन्द्रदेव के हो इसके प्रतिरिक्त पात्रों द्वारा किया गया जिनदेव का पूजन भी कवि की जिनेन्द्र में प्रास्था को अभिव्यक्त करता है ।
भक्त हैं। भगवान्
भगवान् जिनेन्द्रदेव को मूर्तियों एवं जिनालयों पर कवि की प्रास्था नितान्त
१. सुदर्शनोदय, ३।३०-३१
२.
वीरोदय, २८।५०-५१
३. दयोदयचम्पू, १ श्लोक १२ के बाद तीसरा गद्यभाग, ३ श्लोक ७ के बाद दूसरा गद्यभाग, ४५११, ५ श्लोक १४ के पूर्व का गद्यभाग, ६।१२
४. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ३।२८-३२, ४५, ३५, ५०३२, ३४
५. ( क ) जयोदय, १1१
૪૦૨
(ख) वीरोदय, ११
(ग) सुदर्शनोदय, १|१ (घ) श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ११ (ङ) दयोदयचम्पू, १1१
(च) सम्यक्त्वसारशतक, १1१
६. (क) जयोदय, २४॥५८-६० (ख) सुदर्शनोदय, ५ प्रारम्भ के ८ गीत