Book Title: Gyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Author(s): Kiran Tondon
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

Previous | Next

Page 492
________________ ४३२. महाकवि ज्ञानसापर के काव्य-एक अध्ययन नषष काव्य की परम्परा में हम उनके काव्यों में प्रत्येक सगं के अन्त में कषि-परिचय का एक श्लोक देखते हैं... (क) 'श्रीमान् श्रेण्ठिचतुर्भुजः स सुषुपे भूरामलोपाह्वयं - वाणी भूषणवमिनं प्रतवती देवो वयं धीचयम् । , तस्योक्तिः प्रतिपर्व सद्रसमयीयं चेक्षयष्टिर्यपाs. ' ऽमुं सम्ध्येति मनोहरं च दशमं सर्गोत्तमं संकथा ॥' -जयोदय, १०। सगं का भन्तिम श्लोक । (ख) 'श्रीमान श्रेष्ठिचतुर्मुजः स सुषुवे भूरामलेत्याह्वयं पाणी भूषणवणिनं धृतवती देवी च यं धीचयम् । तेनास्मिन् रचिते सतीन्दुसमिते सर्ग समावणितं सर्वज्ञेन दयावता भगवता यत्साम्यमावेशितम् ॥" __ -वीरोदय १७॥ सर्गान्त का श्लोक । (ग) 'श्रीमान् श्रेष्ठिचतुर्भवस सुपुषे भूसम्लेत्याइयं वाणी भूषणवमिनं धृतवती देवी च यं धीचयम् । तेन प्रोक्तसुदर्शनस्य चरितेऽसी श्रीमतां सम्मतः राज्ञोचेतसि मन्मयप्रकंधक: षष्ठोऽमि सों गतः ।।' -सुदर्शनोदय, । सन्ति का सोक । (घ) 'श्रीमान् श्रेष्ठिचतुर्भुजः स मुषुवे भूरामलोपाह्वयं वाणी भूषरगणिनं घृतवती देवी च यं घोचपम् । प्रोक्ते तेन शुभे दयोदयपदे सम्बोऽत्र वेदोपमः यस्मिन् सोमसमर्षितस्य विषयास्यातो विवाहक्रमः ॥” । . -दयोदयचम्पू, ४। लम्ब का अन्तिम श्लोक । इसके अतिरिक्त बह ऐसी कविता करने में भी कुशल हैं, जिसमें पद्य के प्रत्येक चरण का प्रथम प्रक्षर मिलाने से एक सापक वाक्य को संरचना हो जाती है। उदाहरण प्रस्तुत है 'भूपो भवेन्नोतिसमुद्रसेतुः । राष्ट्र तु निष्कष्टकभावमेतु। मनाङ् न हि स्याभव विस्मयादि लोकस्य चित्तं प्रभवेत् प्रसादि ॥१॥ दिशेदेतादशी दृष्टि श्रीमान् वीरजिनप्रभुः । . तन्त्रमेतत् पठेन्नमं शर्म धर्म मभेत भूः ॥२॥ -दयोदयचम्पू, मन्तिम मङ्गलकामना १-२ उपर्युक्त पत्रों में प्रथम पद के प्रत्येक चरण के प्रथम अक्षरों को तथा द्वितीय पद्य के प्रथम तथा तृतीय चरणों के प्रथम अक्षरों का मिलाने से 'भराम

Loading...

Page Navigation
1 ... 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538