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महाकवि ज्ञानसागर का जीवन-दर्शन
४१६ किया है, जहाँ इस ज्ञान की सहायता से हो भगवान् महावीर ने अपने पूर्वजन्मों के वृत्तान्तों को जाना था।' मनःपर्यायज्ञान
. इस ज्ञान के विषय में जैन धर्माचार्यों का कहना है कि जब व्यक्ति के मन से ईर्ष्या, ज्ञानावरण इत्यादि हट जाते हैं और उसका मन निर्मल हो जाता है, तब व्यक्ति दूसरे के मन की बात को प्रासानी से जान जाता है। व्यक्ति की इसी स्थिति का नाम मन: पर्याय ज्ञान है। किन्तु श्रीज्ञानसागर के अनुसार दंगमरी दीक्षा लेने के बाद महापुरुषों के मन में मनःपर्याय शान का प्रादुर्भाव होता है । कवि ने इस ज्ञान को मानसिक अन्धकार का संहारक कहां है। जयकुमार एवं भगवान् महावीर के मन में दंगम्बरी दीक्षा लेने के बाद इसी मान का प्रादुर्भाव हुप्रा था। केवल ज्ञान
___ कर्मरूपी मल के नष्ट हो जाने पर महापुरुषों को केवल मान होता है । समस्त द्रव्यों के पास पर्यायों को जानने वाला, सम्पूर्ण विश्व का अवलोकन करने के लिए नेत्र के समान, अनन्त, एक मोर प्रतीन्द्रिय ज्ञान केवल ज्ञान कहा जाता है।
कविवर ज्ञानसागर ने केवल ज्ञानी के स्वरूप का वर्णन इस प्रकार किया है :-केवल ज्ञान प्राप्त करने वाले की दृष्टि निनिमेष हो जाती है, उसके चार मुख राष्टिगोचर होने लगते हैं, शरीर की छाया नहीं पड़ती, उसके प्रभाव से पृथ्वी हरीभरी हो जाती है, उसका शरीर पृथ्वीतल का स्पर्श नहीं करता, नस पोर केश नहीं
१. वीरोदय, १११ २. (क) ईनितरायज्ञानावरणक्षयोपशमे सति परमनोगतस्यार्चस्व स्फट
परिच्छेदकं ज्ञानं मनःपर्यायः ।' -सर्वदर्शनसंग्रह, पार्हत दर्शन, कारिका के बाद के गणमान से । (ख) 'ऋविपुल इत्येवं स्याम्मन:पर्यायो विषा । विशुदधातिपाताभ्यां तविशेषोऽवगम्यताम् ॥
-नयमित, २७ ३. (क) अयोदय, २८।१२ (ब) वीरोदय, १२७ ४. (क) 'तरक्रियाविशेषाम्ययं सेवन्ते तपस्विनः तज्ञानमबहानावृष्टं -
-सर्वदर्शनसंग्रह, माईतदर्शन, कारिका १६ के बाद के गवमानसे। (ख) अशेषापर्वावविषवं विश्वलोचनम् । अनन्तकमत्व वसनीति पुषः ॥'
-जनवर्मामृत, श६ .