________________
१७०
महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन
किन्तु वह युक्तिपूर्वक तीनों स्त्रियों को ठुकरा देता है, वासना का कोई भी करण उसे छूने में असमर्थ है।' सुदर्शन के प्रभावशाली व्यक्तित्व से प्राश्चर्यचकित राजा घात्रीवाहन उसे अपना राज्य तक देने को तैयार हो जाता है, किन्तु वह उसे ग्रहण नहीं करता। अन्त में अपना घर भी छोड़ देता है । वास्तव में उसका त्याग सराहनीय है।
संगीत प्रिय
- सुदर्शन में साहित्य, संगीत और भक्ति का अद्भुत समन्वय दृष्टिगोचर . होता है । वह जिनदेव का भक्त है । जिनदेव का पूजन करते समय वह जिन भजनों को गाता है, उनमें अनेक राग-रागिनियों का प्रयोग करता है। उसे प्रभातकालीन राग रसिक राग, काफी होलिकाराग, श्यामकल्याण प्रादि शास्त्रीय रागों का ज्ञान है। उसके द्वारा प्रस्तुत एक भजन में उसको साहित्यप्रियता, संगीतप्रियता पौर भक्तिभावना का दर्शन कीजिये
"कदा समयः स समायादिह जिनपूजायाः ॥ कञ्चनकलशे निर्मलजलमधिकृत्य मञ्जुगङ्गायाः । वारांधारा विसर्जनेन तु पदयोजिन मुद्रायाः
लयोऽस्तु कलङ्ककलाया: ।।" --'सुदर्शनोदय'-५। काफी होलिकाराग-गीत की प्रथम पंक्तियां । चारित्रिक दृढ़ता---
सुदर्शन में पाठक को प्रभावित करने वाला गुण है-उसको चारित्रिक दृढ़ता । मनोरमा से विवाह हो जाने के पश्चात्, कपिला, प्रभयमती पोर देवदत्ता ने पृथक-पृथक उसे डिगाने की कोशिश की, किन्तु वह पर्वतराज हिमालय की तरह अचल रहा । उसको दृढ़ता के सामने तीनों कुलटानों के प्रयत्न निष्फल हो गये।' कल्पना कीजिये कि स्त्रियों के इन कुचक्रों से पुरुष अप्रभावित कैसे रह सकता है ? यह तो सुदर्शन जैसे दृढ़ व्यक्तित्व से ही सम्भव है । वह कपिला को युक्ति से, अभयमती को मौन से और देवदत्ता वेश्या को धार्मिक वचनों से पराजित करके अपनी स्तुत्य सहनशीलता का परिचय देता है। विनम्र एवं सरल
सुदर्शन में एक अोर हिमालय की सी दृढ़ता है तो दूसरी मोर फलों के भार से नत वक्षों के समान विनम्रता भी। कपिला को दासी के वचनों पर वह शीघ्र
१. सुदर्शनोदय, ५४७, ७।२६, ६।३० २. वही, ८।१२-२८ ३. वही, १४७, ७।३०, ९३.