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महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-प्रन्यों में कलापन
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(5) स्वयंवरारम्मचक्रबन्ध
"स्वङ्गोयूनां कामिकमोदामृतधारा, यच्छन्ती यतिकलानां कमलाऽरम् । बग्धूकोष्ठी नामिकमापालय गर्भ, भव्यं स्वङ्ग यन्नवगोराजिरशोभम् ॥" .
-अबोदय, ५१०६
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इस चक्रवन्ध के मरों के प्रथम प्रक्षरों को क्रमशः पढ़ने से 'स्वयंवरारम्भ' यह शब्द बनता है। इस शब्द का यह तात्पर्य है कि इस सर्ग में 'स्वयंवर प्रारम्भ' होने का वर्णन है।