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महाकविज्ञानसागर काम्बल
(ब) भरतबन्दनचकबन्ध
"भक्तानामनुकूलसापनकरम्बीक्ष्याहंता संस्तवं, रङ्गतुङ्गतरामधनवने पोतोपमं प्रीतिबम् । तस्मिंस्तिग्मकरोदये । न इहास्त्वन्तस्तमोनाशनम्, नर्मारम्भकसारमद्भुतगुणं वन्दे सदर पुनः ॥"
-अबोदयः २०१७
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कामक
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इस पक्रवन्ध के परों में विद्यमान प्रथम प्रक्षरों को पढ़ने से :भरतबननम्' शब्द बनता है । इस शब्द से यह तात्पर्य निकलता है कि कपि ने इस सर्ग में जयकुमार द्वारा भरतचक्रवर्ती की बन्दना कराई है।