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महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-ग्रन्थों में कलापक्ष
शब्द नहीं मिलता । प्रब कुछ गीतों के राग सहित उदाहरण प्रस्तुत हैं
:--
प्रभाती राग-भैरव
:--
इस राग का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है राग भैरव संवादी - ऋषभ
:
स्वर - रे, ध कोमल, अन्य शुद्ध
पा-भैरव
जाति-सम्पूर्ण बादी-धवत
महाकवि श्रीज्ञानसागर द्वारा इस राग में निवद्ध एक गीत इस प्रकार
काफी होलिकाराग
गायन समय - प्रातः काल तथा
गेयवस्तु - भक्ति के गीत'
"ग्रहो प्रभातो जातो भ्रातो भवभयहरण जिन भास्करतः ॥ स्थायी ॥ पापप्राया निशा पलायामास शुभायाद्भ तलतः ।
नक्षत्रता दृष्टिपथमपि नाञ्चति सितद्युतेनिर्गमनमतः ॥ | स्थायी || स्वगभावस्य च पुनः प्रचारो भवति दृष्टिपथमेष गतः । क्रियते विप्रवरेरिहादरो जड जातस्य समुत्सवतः ॥ स्थायी || सामेरिका विकस्य तु मलिना रुचिः सुमनसामस्ति यतः । भूराजी शान्तये वन्दितुं पादो लगतु विरागभृतः ॥ स्थायी ॥ "
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इस राग का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है :राग —काफी, संवादी स
-
थाट —काफी, जाति - सम्पूर्ण
वादी - प
स्वर - ग, नि कोमल, अन्य शुद्ध, गायन समय - मध्य रात्रि
गेय वस्तु — होली, भजन इत्यादि । 3
ज्ञानसागर जी द्वारा इस राग में निबद्ध एक गोत उदाहरण के रूप में प्रस्तुत
१. विनायकराव पटवर्धन विरचित, 'रागविज्ञान', तृतीयभाग, सप्तम संस्करण, पृ० सं० १०६
२. सुदर्शनोदय, ५ प्रथम गीत ।
(क) वसन्त, संगीत विशारद, (प्रकाशक - संगीत कार्यालय हाथरस) पृ० १८१
(ख) विनायकराव पटवर्धन 'राग-विज्ञान' तृतीयभाग, पृ० सं० १८४