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महाकवि शानसागर के संस्कृत-ग्रन्थों में कलापक्ष
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श्लोकों में, वीरोग्य पोर सुदर्शनोदय के एक-एक श्लोक में (इस प्रकार कुल मिलाकर २७७ श्लोकों में) उपलब्ध होता है। कवि द्वारा प्रयुक्त छन्दों में मात्रा की दृष्टि से इसका स्थान चतुर्थ है। मात्रासमक__ "मात्रासमकं नवमो ल्गान्तम् ।"
-वृत्तरत्नाकर, २१३२ सोलह मात्रामों वाले इस छन्द का प्रयोग कवि ने जयोदय के २६६, बोरोदय के १२. सुदर्शनोदय के १७, श्रीसमुद्रदत्तचरित्र के ३ दयोदयचम्पू के ४ (इस प्रकार कुल २६२) श्लोकों में किया है। मात्रा को ष्टि से इस छन्द का स्थान कवि द्वारा प्रयुक्त छन्दों में पंचम है । पिंगलाचार्यों ने इस छन्द के वानवासिका, चित्रा, उपचित्रा, विश्लोक एवं पादाकुलकवृत्त नामक भेद किये हैं। किन्तु कवि ने सर्वत्र ही इस छन्द के पादाकुलक नामक भेद का प्रयोग किया है, जिसमें ह्रस्व अथवा लघु का बन्धन नहीं होता। इस छन्द का प्रयोग कवि ने सर्ग-समाप्ति, वन-क्रीड़ा वर्णन और नायक-नायिका-प्रेम-वर्णन' में किया है। द्रुतविलम्बित
"अभिव्यक्तं नभभररक्षरदिशाक्षरम् । वदन्ति वृतजातिज्ञा वृत्तं द्रुतविलम्बितम्॥"
-सुवृत्ततिलक, ।१।२७ कवि ने इस छन्द में जयोदय के १६४, वीरोदय के ६, सुदर्शनोदय के ४; श्रीसमुद्रदत्तचरित्र के ३२ और दयोदयचम्पू के ४ (इस प्रकार से कुल २४३) श्लोक निबद्ध किए हैं । मात्रा की दृष्टि से कवि के काव्यों में प्रयुक्त छन्दों में इस छन्द का स्थान छठा है। कवि ने अपने काव्यों में इस छन्द का प्रयोग चिन्ता, मति प्रालि भाव-वर्णन' पोर वैराग्य-वर्णन में किया है ।
१. छन्दःशास्त्रम्, ४।४२-४७ २. 'यदतीतकृतविविधलक्ष्मयुतर्मात्रासमादिपादः कलितम् ।। अनियतवृत्तपरिणामयुक्तं प्रपितं जगत्सु पादाकुलकम् ॥'
-वृत्तरत्नाकर, २१३७ ३. वीरोदय, ११३६ ४. वही, १४।१-८२, ८७, ६३-६४, ६९ ५. जयोदय, २२।१-८२, ८८, ९१ ६. वही, ६१-८६ ७. (क) वही, २५॥१-८६
(ग) श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ७।१-३०