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महाकवि मानसागर के काव्य-एक अध्ययन (२) तपापरिणाम चक्रबन्ध
"तज्जन्मोत्थितमित्यमुन्मदसुखं लब्ध्वा यषापाकलि, पश्चात् सम्प्रति जम्पती पदमतामेवं हृदा पारुणा । पञ्चाक्षाणि निमानि निमंवतया तवृत्तमरयुत्तमम्, मंक्षुद् गीतमिहोपवीतपदकरित्युत्तणाडू मम ॥"
-जयोदव, २८
करावा
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प्रस्तुत पक्रवन्ध के भरों में विद्यमान प्रथमाक्षरों को क्रमशः पढ़ने से 'तप:परिणाम' यह शब्द बनता है। इससे तात्पर्य निकलता है कि कवि ने इस पर्व में जयकुमार द्वारा मोक्षप्राप्ति का वर्णन किया है ।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि चित्रालङ्कारों को प्रयुक्त करते समय कवि के हरूप में दो इच्छायें रही होंगी, एक तो पाण्डित्य-प्रदर्शन को पीर