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यानवन्ध
"न मनोद्यमि देवेभ्योऽहंदुद्भ्यः संव्रजतां सदा । दासतां जनमात्रस्य भवेदप्यच नो मनः ॥"
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महाविज्ञानसागर के काव्य- एक अध्यय
च
दभ्यः
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भ स्वभा
- बीरोदय, २२|३८
((३५ १)
श्लोक को वितान पोर मण्डप में लिखने के पश्चात् स्तम्भों और मंच में लिखा जाता है । इस श्लोक के प्रथम दो चरण मण्डप धौर वितान में हैं, तत्पश्चात् तृतीय चरण दाहिने स्तम्भ से मंच की घोर मोर चतुर्थ चरण मंच से होता हुआ बायें स्तम्भ में लिखा गया है ।