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महाकवि भानसागर के काम-एक सम्मा स्रग्विणी ३ + + + + पृथ्वी ३ + मजुभाषिणी ३ . + ललित ३ +
लावनी ३ + ३२. हरिगीतिका २ + ३३. पुष्पितामा २ + ३४. शाचिनी
१ + उपचित्रा १ + तामरस १ + उद्गीति १ + उपगीति १ + पञ्चचामर १ + तोटक १ + + +
दोधक १ + ४२. सम्परा
१ + + + + + चन्द्रलेखा १ + + सनाई १ + + + + + १ प्रतिभा १ + + + + +
प्ररल १ + + + + + कुलयोग १७ २९ ३०७६ ६८८ ४१२ ३४५ १६६ १.० ५०६०
श्रीज्ञानसागर द्वारा अपने काग्यों में प्रयुक्त छन्दों की उपर्युक्त सारिणी को देखने से ज्ञात हो जाता है कि कवि ने ५०९० श्लोकों को ४६ छन्दों में निबद्ध किया है । इन छन्दों में १७ छन्द प्रचलित हैं और २६ छन्द मप्रचलित । सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाले छन्दों के क्रम में उपजाति का स्थान सर्वप्रथम है। तत्पश्चात् मनुष्टुप, बियोगिनी रथोद्धता, मात्रासमक, द्रुतविलम्वित, वंशस्थ, आर्या, स्वागता, बसन्ततिलका, उपेन्द्रवज्रा, मालभारिणी, शार्दूलविक्रीडित एवं इन्द्रवज्रा इन १३ बन्दों का स्थान पाया जाता है।
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मानसागर जी ने जयोदय के ३०७६ श्लोकों को ४६ छन्दों में, वीरोदय के ६८८ श्लोकों को १८ छन्दों में, सुदर्शनोदय के ४१२ श्लोकों को १६ छन्दों में, श्री. समुद्रदत्तचरित्र के ३४५ श्लोकों को १२ छन्दों में, दयोदयचम्पू के १६६ लोकों को ११ बन्दों में और मुनिमनोरजनशतक के १..लोकों को १ छन्द में निवट