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महाकवि मानसागर के कार्य-एक अध्ययन
नालवन्तबन्ध
"सन्तः सदा समा भान्ति मधुमति नुतिप्रियाः । पयि त्वयि महावीर स्वीतां कुरु मजूं मयि ॥"
-वीरोक्य, २२१४.
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इस बन्ध में श्लोक को क्रमशः दण्ड में स्थित करते हुये, पण पोर मलबत्त जो सन्धि में ले जाते हैं, तत्पश्चात् तालवृन्त में घुमाया जाता है, जैसा कि पर्यन्त
सुदर्शनोदय में कवि ने एक चित्रबन्ध प्रयुक्त किया है-कसशत्प। अब इसका पदाहरण प्रस्तुत है।