________________
३४२
महाकवि भानसागर के काम्प-एक सम्पर्क
(8) करोपलम्बनवाबग्ध
"कत्तुं लगनास्तव च ताबदबारम्, लोकाः श्रोजिनदेवविभोस्ते स्पष्टाभम् । पवित्रेण वे भावना समास्यानेन, नन्दककलोक्तिपः सोऽरं सम्भवुनः ॥"
-जयोदय, १२।१५७
क
ट
इस पक्रवन्ध के अरों में विद्यमान प्रथमाक्षरों को पढ़ने से रोपसम्मान' शम्द बनता है, जो इस बात की सूचना देता है कि इस सर्ग में विवाह कार्य पूर्णतया समाप्त हो जाने का वर्णन है।