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महाकवि मानसागर के काम्य-एक अध्ययन (३) सरितवलम्बचकबन्ध
"सकलमपि कलत्रमनुमानकम्, लिखितमनूक्तं ललितमतिबसम् । दधत्स्वपदवलमुचितार्थभवम्, बहु संचरितदमवमलं भुवः ॥"
-जयोदय, १४
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बाबाम:
इस चक्रवन्ध में मरों में विद्यमान प्रथम प्रक्षरों को क्रमशः पढ़ने से 'सरिद. बसम्ब' शब्द बनता है। इस सर्ग में कवि ने जयकुमार के नदी बिहार का वर्णन किया है, जो इस शम्ब द्वारा संकेतित होता है।