________________
१३९
महाकविज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन
(4) अपराभवचक्रवन्ध
महन्तमागोहरममादधुना समर्थयितुंतराम्, कश्मलादाजिमवाज्जयोदरमावहन्स्मरसन्निभम् । पश्चात्तपन्नपकृत्यमादरतो जिनस्य कतावहम, वन्दना प्रकंश्चकर च परम्पराध्वशमवाश्रवम् ।।"
-बयोदय, ८६५
43आनाका
AS
TERMEROFE
.
प्रस्तुत चक्रवन्ध के मरों में स्थिति प्रथमाक्षरों को क्रमशः पढ़ने पर 'अकं. पराभव' शब्द बनता है। इस शब्द से यह संकेत मिलता है कि इस सर्ग में युद्ध में पीति के हारने का वर्णन है।