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महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन साता।""
यहां पर मत महाबल करुण रस का पालम्बन है। उसकी माता मोर बहिन पाश्रय है। उसकी मत्यु का समाचार उद्दीपन विभाव है। रोमाञ्च, विवणंता, किकृतंव्यविमूढता आदि मनुभाव हैं। जड़ता, विषाद, ग्लानि मादि व्यभिचारिभाव हैं।
(ख) गुणपाल अनजाने में ही विष के लड्डू खाकर मत्यु को प्राप्त हो जाता है। पिता को मृत्यु के मुंह में पहुँचा हुमा देखकर विषा शोक से व्याकुल हो जाती
"गुणपालः तदेतत् खादितवान् यावत्तावदेवाङ्गोपाङ्गानि तानयित्वा मुखं खलु व्यापाद्य स्फालयित्वा च चक्षषी भूमौ निपपात । विषा सहसव तदिदमवस्थान्तरं पितुष्ट्वा हे भगवन् । किमिदं जातम् ? अहो कथमिव कर्तुमारब्धवांस्तात आगम्यतां शोघ्रमेव लोकैरिहातः इत्येवं पूच्चकार । xx Xगुणभी:-बहिर्वेशतः समागताऽतकितोपस्थितमिदमात्मनो भौतिकमवसरमवेत्य सविषादं जगाद । x x x इत्यतो मया सम्पादित विषान्नमधुना मंयापि भोक्तव्यमेव. किमनेन निःसारेण कलङ्कमलीमसेन जीवितव्येनेति ॥"२
इस उद्धरण में बिषा मोर गुणश्री करुण रस का प्राश्रय है। गुणपाल मालम्बन है । उसकी अनायास मृत्यु उद्दीपन विभाव है। भगवान् को सम्बोधित करना, क्रन्दन, लोगों को पुकारना, प्रलाप करना, विवर्णता, अनुमरण इत्यादि मनुभाव हैं । निर्वद, मोह, अपस्मार, ग्लानि, विषाद, जड़ता, उन्माद इत्यादि व्यभिपारिभाव हैं। बरसल रस- वैसे तो दयोदयचम्पू में वत्सल रस की झांकी हमें तीन स्थलों पर देखने को मिलती है। किन्तु इनमें से एक ही स्थल उदाहरण के रूप में उल्लेखनीय है । गुणपाल सेठ के कहने पर चाण्डाल सोमदत्त को मारता नहीं है अपितु नदी के • किनारे स्थित पेड़ के नीचे छोड़ जाता है। समीपस्थ वस्ती में रहने वाला गोविन्द नाम का ग्वामा, अपनी गायों को लेकर उसी मार्ग से निकला। बालक को देखकर निःसन्तान ग्वाले के हृदय में पुत्र-प्रेम का सोता फूट पड़ा, उसकी पत्नी भी सोमदत्त को पाकर हर्षित हई । कवि के ही शब्दों में वत्सल रस का प्रास्वादन कीजिए :
१. दयोदय चम्पू, ५ अन्तिम गद्यभाग। . २. वही, ६ श्लोक ६ के पहले के गद्यभाग से श्लोक तक । .
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के बाव के गद्यभाग