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महाकवि शानसागर के संस्कृत-प्रन्थों में मावपक्ष
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योग्य हो, जो कि इस समय कचनार के फल के समान दो रंगों का विभ्रम उत्पन्न कर रहा है।)
यहां पर सुलोचना की परिचारिका काञ्चीनगरी के राजा का परिचय देतो है। यहां पर उपमा अलवार मोर द्वयर्थक विवरणंता' पद से यह ध्वनित होता है कि यह दोहरी नोति चलने वाला है, अतः इसका वरण करना उचित नहीं होगा। (ख) वीरोदय महाकाव्य--
दिव्या ङ्गनामों द्वारा माता की सेवा के प्रसङ्ग में ध्वनि का एक उदाहरण प्रस्तुत है :
"शिरो गुरुत्वान्नतिमाप भक्तितुलास्थितं चेत्युचितव युक्तिः । करद्वयी कुडमलकोमला सा समुच्चचालापि तदेव तासाम् ॥""
(उसी समय उन देवियों के भक्तिरूपी तुला के एक पल पर स्थित सिर तो भारी होने के कारण नीचे झुक गये और दूसरे पलड़े पर स्थित कमल के समान कोमल दोनों हाथ ऊपर उठ गए, यह बात उचित प्रतीत होती है)।
इस श्लोक में रूपक मलङ्कार से यह वस्तु ध्वनित होती है कि देवियों ने बडा सहित मस्तक झुका कर मोर दोनों हाथ जोड़कर माता प्रियकारिणी को प्रणाम किया। (ग) सुदर्शनोदय
देवदत्ता के सुदर्शन के साथ बातचीत करने में निकलती हुई ध्वनि का उदाहरण प्रस्तुत है :
"मन्तः समासाद्य पुनर्जगाद कामानुरूपोक्तिविचक्षणाऽदः । किमर्थमाचार इयान् विचार्य बाल्येऽपि लब्धस्त्वकया बदाऽयं ।"२
(सुदर्शन को अपने घर ले जाकर कामचेष्टा के अनुरूप वचन बोलने में चतुर उस वैश्या ने कहा-हे मार्य ! इस बाल्यावस्था में क्या सोचकर तुमने इतने कठिन व्रत को अङ्गीकृत किया है ?)
यहाँ देवदता के कपन में यह ध्वनि निकलती है कि यह समय तो भोगविलास करने का है। साधु-वेश धारण करने का नहीं, मतः माप मेरे साप भोगबिलास कीजिए । यह स्वतः सम्भवी वस्तु से वस्तुबंजय ध्वनि का उदाहरण है। (१) बीसमुद्रदत्तचरित्र____ भद्रमित्र अपने पिता से धनार्जन हेतु विदेश जाने की अनुमति मांगता है; मोर काता है :
१. वीरोग्य, १२५ २. सुदर्शनोदय, ९।१४