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महाकवि ज्ञानसागर के काम-एक अध्ययन सुदर्शन की बाल्यकालीन चेष्टा में उपमा देखिये* "गुरुमाप्य स वै क्षमाषरं सुदिशो मातुरचोदयन्नरम् । भुवि पूज्यतया रवियंपा नष्णम्भोजमुदेऽब्रवत्तथा ।"
-सुदर्शनोदय, २२० (जब सुदर्शन अपनी सुकृतकारिणी माता की गोद से उठकर पिता के पास पातापा, तब लोगों के नयनकमलों को खिलाता हुमा वह सबके पावर का पात्र बन पाता था। उस समय उसकी शोभा वैसी ही होती थी, बेटे सूर्य पूर्व दिशारूप माला को छोड़कर उदयाचलरूप पिता के समीप जाकर सरोवरों के कमलों को विकसित करता हुमा संसार में सबके लिए पूज्य हो जाता है।)
प्रस्तुत श्लोक में सुदर्शन, उसकी माता, उसके पिता और नेत्र रूपी कमल उपमेय है। पौर सूर्य, पूर्वदिशा, उदयाचल सरोवर के कमल उपमान है। सबंबपता साधारण धर्म है । 'यया' पब रुपमा-बाधक है। चक्रायुष और उसकी रानियों के सम्बन्ध में कवि की उदभावना प्रष्टव्य है
"युवाऽगहीद्वारिनिः समस्ता बभूवुरेताः सुरसाः समस्ताः ।. सा चित्रमाला बलु तास गङ्गापदुत्तमा स्फीतिपरी सदंगात ॥"
-श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, २० (समुद्र के समान युवक चकायुष ने उत्तम जल को धारण करने वाली नदियों के समान, उत्तम चेष्टामों को धारण करने वाली अनेक स्त्रियों के साथ विवाह किया। जिस प्रकार नदियों में गङ्गा सर्वश्रेष्ठ है, उसी प्रकार उन रानियों में चित्रमाला नामकी रानी अपूर्व सोनार्यशालिनी पोर श्रेष्ठ थी।)
प्रस्तुत श्लोक में चक्रायुष, चित्रमाला एवं अन्य स्त्रियाँ उपमेय हैं एवं सनुन, मङ्गा और अन्य नदियां उपमान हैं। 'सुरसाः', 'उपमाः' और 'सदंगात्स्फीतिधरी' साधारण धर्म है । 'वत्' शब्द उपमावाचक है।
मालवदेश वर्णन में कवि द्वारा प्रयुक्त श्लिष्टोपमा का एक उदाहरण प्रस्तुत है
"............सुप्रसिखो मालवनाम देशः स पानेककल्पपावपसन्निवेशतया ममिवाप्सरःपरिवेषतया पकिसापरस्वर्गप्रदेश इव समवभासते ॥"
-दयोत्यवम्यू, १॥ श्लोक के बाद का गवभाग । . (पनेक प्रकार के वृक्षों से युक्त और स्वच्छ जल वाले तालाबों से युक्त यह सुप्रसिद्ध मालव नाम का देश, अनेक कल्पक्षों से युक्त, सुन्दर अप्सरामों से परिवेष्टित स्वर्ग के समान प्रतीत होता है।)
प्रस्तुत पवभाग में मालवदेश उपमेय पोर स्वर्ग उपमान है। 'मनेककल्प. पारपसन्निवेषतया' पोर मलिताप्सरःपरिवेषतया' श्मे माध्यम से साधारण वर्म ।'' उपमावाचक शब्द है।।